जानिये कुंडली के अति विशिष्ट योगकारक ग्रहों के बारे में
 
                                        
                                
                            आज हम आपके समक्ष एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय लेकर उपस्थित हैं । हमारा पूर्ण विशवास है की आज का विषय आपकी ज्योतिषीय जानकारी में वृद्धिकारक होगा, जन्मकुंडली फलादेश में आपका मददगार होगा और आपके द्वारा किये जाने वाले कुंडली विश्लेषन में निखार लाएगा । हम जो जानकारी अपने पाठकों को प्रदान करने जा रहे हैं इसे वैदिक ज्योतिष में अतिविशिष्ट कारक गृह सम्बन्धी जानकारी कहा जाता है । जानते हैं अतिविशिष्ट कारक गृह के बारे में …
क्या होता है अति विशिष्ट कारक गृह
सभी नौ ग्रहों के अपने अपने कारक भाव होते हैं और कुछ भाव ऐसे भी होते हैं जिनमे यह गृह दिग्बली होते हैं । इसी प्रकार लग्न कुंडली के कुछ भाव ऐसे भी होते हैं जिनमे कुछ विशेष ग्रहों के स्थित होने पर भाव सम्बन्धी प्रभाव में वृद्धि हो जाती है । ऐसे ग्रहों को अतिविशिष्ट कारक गृह कहा जाता है । अति विशिष्ट कारक गृह जिस भाव में अति विशिष्ट होता है यदि उस ही भाव में विराजमान हो जाए तो उस भाव विशेष के प्रभाव में वृद्धि हो जाती है । आइये जानते हैं नव गृह जन्मकुंडली के कौन कौन से भाव में हो जाते हैं अति विशिष्ट …..
सूर्य
सूर्य देवतालग्न और नवम में कारक और दशम में दिग्बली होते हैं । ग्यारहवें भाव में स्थित होने पर सूर्य अति विशिष्ट गृह हो जाते हैं और इस भाव के प्रभाव में वृद्धिकारक होते हैं । जिस किसी जातक की जन्मकुंडली में ऐसा सूर्य विधमान हो उसे जीवन भर धन प्राप्त होता रहता है ।
चंद्र
चन्द्रमा देवता चौथे भाव में कारक और चौथे भाव में ही दिग्बली भी होते हैं । यही चंद्र यदि लग्न अथवा सप्तम में स्थित हो जाएँ तो अति विशिष्ट कारक हो जाते हैं । जिस किसी जातक की लग्नकुंडली में प्रथम भावस्थ चंद्र हो तो ऐसा जातक भावुक भी होता है और दूसरों का भला चाहने और करने वाला भी । ऐसे जातक का समाज हमेशा आदर करता है ।
मंगल
मंगल देवता तीसरे और छठे भाव में कारक और दशम भाव में दिग्बली होते हैं । यही मंगल दशम भाव में स्थित होने पर अति विशिष्ट योगकारक गृह हो जाते हैं ।
बुद्ध
बुद्ध चौथे और दसवें भाव में कारक और प्रथम भाव में दिग्बली होते हैं । व्यापार व् बुद्धि के कारक बुद्ध यदि लग्नकुंडली के ग्यारहवें भाव स्थित हो जाएँ तो अतिविशिष्ट योगकारक गृह हो जाते हैं । ऐसा जातक किसी एक क्षेत्र से बंधा नहीं रहता बल्कि कई क्षेत्रों से धनार्जन करता है ।
गुरु
देवगुरु लग्नकुंडली के दुसरे, पांचवें, नवें, दसवें और ग्यारहवें भाव के कारक और लग्न में दिग्बली होते हैं । यही गुरु लग्न कुंडली के पंचम व् नवम भाव में अति विशिष्ट योगकारक गृह हो जाते हैं । ऐसा जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है ।
शुक्र
शुक्र सप्तम भाव के कारक और चतुर्थ भाव में दिग्बली होते हैं । यही शुक्र लग्नकुंडली के द्वादश भाव में स्थित होने पर अतिविशिष्ट योगकारक गृह हो जाते हैं । चौथे भाव में स्थित होने पर भी शुक्र अतिविशिष्ट योगकारक गृह होते हैं लेकिन द्वादश से कम विशिष्ट कारक गिने जाते हैं और सप्तम में भी अति विशिष्ट योगकारक गृह होते हैं लेकिन चतुर्थ से काम प्रभावी माने जाते हैं ।
शनि
छठे, आठवें, दसवें, बारहवें भाव के कारक होते हैं और सातवें भाव में दिग्बली होते हैं । यही शनि तीसरे और छठवें भाव में स्थित होने पर अतिविशिष्ट योगकारक गृह हो जाते हैं ।
राहु
तीसरे, छठे और दसवें भाव में कारक होते हैं । राहु तीसरे, छठे और दसवें भाव में ही स्थित होने पर अतिविशिष्ट योगकारक गृह गिने जाते हैं ।
केतु
दुसरे और आठवें भाव में कारक होते हैं । केतुदुसरे और आठवें भाव में ही स्थित होने पर अति विशिष्ट योगकारक गृह गिने जाते हैं ।
 
                     
	
                                         
	
                                         
	
                                         
	
                             
	
                             
	
                             
	
                             
	
							 
	
							 
	
							 
	
							 
	
							