अधपुष्पी का औषधीय गुण

अधपुष्पी प्रकृति से कड़वी, तीखी, गर्म और लघु होती है। यह कफ और वात दोष को कम करने वाली है। इसके गुण मूढ़गर्भ (अवरोधित प्रसव) को निकालने में सहायक हैं। यह आंखों के लिए लाभकारी है तथा घावों को जल्दी ठीक करने में मदद करती है। अधपुष्पी के पत्ते विष के प्रभाव को कम करने में, मृदुकरण में, गर्भाशय संकोचन और मासिक धर्म से संबंधित समस्याओं में उपयोगी हैं। यह पेचिश (प्रवाहिकारोधी), गर्म ज्वर, अश्मरी (पथरी), आमवात (अर्थराइटिस), अर्श (पाइल्स), ग्रहणी (आंतों के रोग), शोथ (सूजन), अतिसार (दस्त), मूत्रकृच्छ्र (पेशाब में दर्द), कुष्ठ और त्वचा रोगों के इलाज में भी फायदेमंद है। इसके फूल पसीना और सांस संबंधी समस्याओं में प्रभावी होते हैं। अधपुष्पी की जड़ पेचिश निवारक गुण रखती है।
अधपुष्पी के फायदे और उपयोग
अधपुष्पी में कई औषधीय गुण होते हैं जो विभिन्न बीमारियों के इलाज में सहायक हैं। यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने में भी सहायक माना जाता है। आयुर्वेद में इसके उपयोग से वात, कफ दोष में कमी आती है और शारीरिक रोगों का उपचार होता है।
अधपुष्पी का उपयोगी भाग
आयुर्वेद के अनुसार अधपुष्पी के पंचांग (पूरे पौधे के सभी हिस्से) और जड़ सबसे ज्यादा औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं।
अधपुष्पी का प्रयोग कैसे करें
अधपुष्पी का उपयोग किसी विशेष बीमारी के उपचार हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार करना चाहिए। सामान्यतः चिकित्सक के परामर्श से 1 से 3 ग्राम चूर्ण या 10 से 20 मिली काढ़े का सेवन किया जाता है।
अधपुष्पी का वितरण और वृद्धि स्थान
अधपुष्पी हिमालय क्षेत्र में लगभग 1500 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है। भारत के अधिकांश प्रदेशों में यह सड़कों के किनारे, पथरीली और रेतीली भूमि पर वर्षा ऋतु में प्रचुर मात्रा में उगता है।