बुध और इला के पुत्र पुरुरवा और स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी का प्रेम: भागवत कथा

बुध और इला के पुत्र पुरुरवा और स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी का प्रेम: भागवत कथा

भागवत कथा की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज मैं आपको बुध और इला के पुत्र पुरुरवा तथा भगवान नर-नारायण के उरू से उत्पन्न स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी की प्रेम कथा सुनाता हूँ। उर्वशी की जन्म कथा मैंने हाल ही में साझा की थी।

भागवत के अनुसार, बुध और इला के संयोग से पुत्र पुरुरवा का जन्म हुआ था। पुरुरवा रूपवान, पराक्रमी और अपने समय के सर्वाधिक प्रसिद्ध राजा थे। उनकी ख्याति पूरे पृथ्वी पर फैली हुई थी।

एक बार नारदजी देवसभा में राजा पुरुरवा के गुणों का बखान कर रहे थे। यह सुनकर उर्वशी उस पर आकर्षित हो गईं। नृत्य-संगीत की प्रस्तुति के दौरान भी उनका मन पुरुरवा के विचारों में व्यस्त था।

उर्वशी पुरुरवा से प्रेम करने लगीं। परंतु देवसभा में नृत्य करते हुए उन्होंने भूल कर दी, जिससे क्रोधित इंद्र और वरुण ने उन्हें मृत्युलोक में भेज कर पुरुरवा के साथ रहने का शाप दे दिया।

उर्वशी भले ही पुरुरवा से प्रेम करती थीं, लेकिन मृत्युलोक में रहने की कल्पना से डर गईं। वे इंद्र के चरणों में जाकर शापमुक्ति का अनुरोध करने लगीं। इंद्र ने कहा कि शाप भंग नहीं हो सकता, लेकिन वे जल्द ही उन्हें देवलोक में वापस ले जाएंगे।

भूलोक पहुँचकर उर्वशी पुरुरवा से मिलीं। पुरुरवा ने उन्हें जीवनसंगिनी बनने का प्रस्ताव दिया, जिसे उर्वशी ने तीन शर्तों के साथ स्वीकार किया। यदि ये शर्तें टूटेंगी तो वह वापस चली जाएगी।

पहली शर्त थी कि पुरुरवा उनकी अनुमति के बिना उनसे सम्मिलित नहीं होगा। दूसरी, समागम के अलावा वे नग्न अवस्था में उर्वशी के सामने नहीं आएंगे। तीसरी शर्त यह थी कि पुरुरवा उनकी पुत्र समान दो मेमनों की रक्षा करेंगे।

शर्तों को मानते हुए उर्वशी ने पुरुरवा से विवाह किया। जल्द ही देवताओं को उनकी अनुपस्थिति महसूस हुई और उन्होंने गंधर्वों को उर्वशी को वापस लाने का काम सौंपा।

एक रात विश्वावसु और अन्य गंधर्व चुपके से उर्वशी के मेमनों को अपहरण करने आए। मेमनों की आवाज सुनकर उर्वशी ने पुरुरवा को बचाने को कहा। तलवार लिए पुरुरवा गंधर्वों के पीछे भागे, पर उनकी नग्न अवस्था में देख उर्वशी क्रोधित हो गईं और शर्त के अनुसार स्वर्ग चली गईं।

पुरुरवा उनके प्रेम में व्याकुल होकर कई स्थानों पर भटकते हुए कुरुक्षेत्र पहुंचे, जहां उन्होंने सरस्वती के तट पर उर्वशी को जलक्रीड़ा करते देखा। उन्होंने उनका मनाने का प्रयास किया, परंतु उर्वशी मानी नहीं। जब पुरुरवा ने प्राण त्यागने की बात कही, तो उर्वशी दयालु हुईं और कहा कि यदि वे अपने राजकार्य में मन लगाएं तो वर्ष के अंत में एक रात्रि उनके पास आएंगी। पुरुरवा ने उस रात्रि की प्रतीक्षा करने का वचन दिया।

अपना वचन निभाते हुए उर्वशी उस रात्रि पुरुरवा के पास आईं। उनका मिलन हुआ और देवता एवं गंधर्व उनके प्रेम पर मुग्ध हो गए। देवताओं ने पुरुरवा को बताया कि वे मृत्युंजय होंगे और यज्ञ कर स्वर्ग के अधिकारी बनेंगे।

देवताओं ने पुरुरवा को पवित्र अग्नि दी, जिससे यज्ञ करने पर वे स्वर्ग में वास कर सकेंगे। परंतु पृथ्वी लौटते समय पुरुरवा को उस अग्नि की सुरक्षा में भूल हुई। वह थाली और अग्नि शमी वृक्ष और पवित्र अश्वत्थ (पीपल) में परिवर्तित हो गई। इससे पुरुरवा विक्षिप्त हो गया।

गंधर्वों को उसकी दशा पर दया आई और उन्होंने यज्ञ की विधि सिखाई। पुरुरवा ने यज्ञ करके गंधर्व बनकर सूर्य के समान प्रतिष्ठा प्राप्त की। उर्वशी ने उन्हें पुत्र आयु कुमार प्रदान किया।

पुरुरवा के वंश में राजा गाधि हुए, जिनकी पुत्री सत्यवती थी। सत्यवती से विवाह ऋचीक ने किया, जो मरीच के पुत्र थे। सत्यवती और ऋचीक के वंश में जन्मे परशुराम की कथा भी भागवत में आती है।

यह कथा आगे भी जारी रहेगी। पुरुरवा और उर्वशी की प्रेम कहानी न केवल भागवत में, बल्कि ऋग्वेद में भी मिलती है, जिसमें कुछ भिन्नताएँ पाई जाती हैं। यह पौराणिक प्रेम गाथा सदियों से अनगिनत पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत रही है।

कभी अवसर मिले तो हम इस कथा को विस्तार से फिर से सुनाएंगे।