पत्नी और बहू को लक्ष्मी स्वरूप तथा दामाद को विष्णु स्वरूप क्यों माना जाता है?
भारतीय संस्कृति में जब कोई नई बहू घर में प्रवेश करती है, तो प्रायः लोग कहते हैं कि "घर में लक्ष्मी का आगमन हुआ है।" यही नहीं, जब किसी परिवार की उन्नति होती है, तो यह भी कहा जाता है कि उस घर की स्त्री लक्ष्मी स्वरूपा है, जिसके चरण पड़ते ही धन-संपत्ति और समृद्धि का वास हो गया है।
उसी प्रकार जब कोई युवक विवाह के पश्चात अपने ससुराल जाता है, तो वहाँ उसे भगवान विष्णु के समान सम्मान दिया जाता है। उसकी आरती उतारी जाती है और उसे श्रद्धा के साथ मान-दान प्रदान किया जाता है। यह परंपरा केवल एक सामाजिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी पौराणिक और सांस्कृतिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।
देवी पार्वती और बेटी की परंपरा
देवी पार्वती, राजा हिमालय की पुत्री मानी जाती हैं, और इस नाते वे संपूर्ण भारतवर्ष में एक "बेटी" के रूप में पूजनीय हैं। नवरात्रि से एक दिन पूर्व मनाया जाने वाला "महालया" पर्व इस विश्वास पर आधारित है कि इस दिन देवी पार्वती अपने पुत्रों के साथ पृथ्वी पर अपने मायके आती हैं और नवरात्र के नौ दिनों तक वहीं निवास करती हैं। इसी कारण से भारतीय परंपरा में बहू या पुत्रवधू की तुलना देवी पार्वती से नहीं की जाती, क्योंकि वे बेटी रूप में पूजित हैं।
बहू – लक्ष्मी स्वरूपा
भगवान विष्णु ने जब-जब पृथ्वी पर अवतार लिए, तब-तब माता लक्ष्मी ने भी उनके साथ अवतार लिया। रामावतार में भगवान विष्णु ने राम रूप में अवतार लिया और देवी लक्ष्मी ने सीता के रूप में। भगवान राम ने मिथिला जाकर सीता से विवाह किया। अयोध्यावासियों ने सीता को बहू के रूप में स्वीकार किया और उन्हें लक्ष्मी रूप में पूजा। इस घटना के आधार पर वैष्णव परंपरा में बहुओं को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है, जो अपने साथ घर में सुख, शांति और समृद्धि लेकर आती हैं।
दामाद – विष्णु स्वरूप
भगवान राम जब मिथिला पहुंचे, तब वे एक दामाद के रूप में वहां पधारे थे। इस कारण मिथिलावासी आज भी भगवान राम और विष्णु को दामाद रूप में पूजते हैं, जबकि सीता को बेटी के रूप में सम्मानित करते हैं। यही कारण है कि विवाह के समय या उसके बाद जब कोई दामाद अपने ससुराल आता है, तो उसे विष्णु स्वरूप मानकर उसका स्वागत किया जाता है।
भारत के कुछ प्रमुख पौराणिक सरोवर और उनका महत्व
1. कैलाश मानसरोवर
यह सरोवर पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्माजी के मन से उत्पन्न हुआ था। यह वही स्थान है जहाँ माता पार्वती स्नान करती हैं और कैलाश पर्वत के समीप स्थित है, जो भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। यह सरोवर न केवल हिन्दू धर्म, बल्कि बौद्ध धर्म में भी पवित्र माना गया है।
2. नारायण सरोवर
गुजरात के कच्छ ज़िले में स्थित यह सरोवर भगवान विष्णु से संबंधित है। भागवत पुराण में इसका उल्लेख मिलता है और कई ऋषियों के यहाँ आगमन की कथाएं इससे जुड़ी हैं।
3. पंपा सरोवर
रामायण कालीन स्थल किष्किंधा के पास स्थित यह सरोवर वह स्थान है जहाँ भगवान राम की भेंट शबरी से हुई थी। पास में ही मतंग ऋषि का वन और शबरी की गुफा भी स्थित है।
4. पुष्कर सरोवर
राजस्थान के अजमेर ज़िले में स्थित यह सरोवर अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहीं पर भगवान ब्रह्मा ने यज्ञ किया था और यह भी कहा जाता है कि भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध यहीं किया था।
5. बिंदु सरोवर
अहमदाबाद से लगभग 130 किलोमीटर उत्तर में स्थित यह सरोवर ऋषि कर्दम की तपोभूमि है। ऋग्वेद में भी इसका उल्लेख मिलता है। यहां पर भगवान परशुराम ने अपनी माता का श्राद्ध किया था।
निष्कर्ष
भारतीय परंपराओं में प्रतीकात्मकता और पौराणिक आधार पर बनी परंपराओं का विशेष महत्व है। बहू को लक्ष्मी और दामाद को विष्णु स्वरूप मानना केवल एक रीति नहीं, बल्कि उन मान्यताओं की अभिव्यक्ति है जिनके माध्यम से परिवार और समाज में संबंधों को आदर, प्रेम और आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाता है।