ब्रज की धूलि बनने तक देवों में क्यों मची थी मारामारी – अद्भुत कथा
जब भगवान श्रीकृष्ण ने व्रज में अवतार लेकर अपनी बाललीला शुरू करने का संकल्प लिया, तो यह खबर सभी देवताओं तक पहुंच गई। वे सभी बालकृष्ण की लीलाओं का साक्षी बनने को आतुर हो उठे।
कुछ देवताओं ने व्रज में ग्वाला रूप धारण किया, कुछ गोपी बने, तो कुछ गाय, मोर, तोता आदि बनकर व्रज के सौंदर्य में चार चांद लगा दिए। प्रभु के अवतार से पहले ही व्रज अपनी भव्यता और मनोरम छटा से प्रकाशित हो उठा।
लेकिन कुछ देवता थे जो पीछे रह गए। वे ब्रह्माजी के पास गए और अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए बोले, "ब्रह्मदेव! आपने हमें व्रज में क्यों नहीं भेजा? हम भी बालकृष्ण की लीलाओं का भागीदार बनना चाहते हैं। कृपया हमें भी किसी रूप में व्रज में भेजिए।"
ब्रह्माजी ने उत्तर दिया, "व्रज में जितने लोगों को भेजना संभव था, भेज दिया। अब व्रज में जगह नहीं बची।"
देवताओं ने पुनः अनुरोध किया, "हमें ग्वालिनें बना दीजिए।"
ब्रह्माजी ने कहा, "जितनी ग्वालिनें बनानी थीं, बन चुकी हैं। अब और नहीं।"
फिर देवताओं ने कहा, "ग्वालिनें नहीं बन सकतीं तो बरसाने की गोपियां ही बना दीजिए।"
ब्रह्माजी ने मुस्कुराते हुए कहा, "गोपी भी भरपूर हैं। रास रात्रि में हजारों दीक जाएंगी। अब गोपियों की भी जगह नहीं बची।"
देवता बोले, "गोपी नहीं तो गाएं ही बना दीजिए।"
ब्रह्माजी बोले, "गायें भी बहुत हैं। नन्द बाबा के पास ही नौ लाख गाएं हैं। अगर और भी गाय बना दिए तो पूरा व्रज गोशाला बन जाएगा।"
देवताओं ने हार नहीं मानी, "गायें नहीं तो मोर बना दीजिए, ठाकुरजी को नाच-नाच कर रिझाएंगे।"
"मोर भी बहुत हैं," ब्रह्माजी बोले, "उनके लिए अलग से मोर कुटी बनानी पड़ी है, पर अब मोरों की भी जगह नहीं।"
देवता बोले, "तो कोई तोता, मैना, चिड़िया, कबूतर बना दीजिए।"
"वे भी पूरी पेड़ों पर बसे हुए हैं," ब्रह्माजी ने बताया।
देवता बोले, "कुछ नहीं तो बंदर ही बना दीजिए।"
"वो भी भरपूर हैं," ब्रह्माजी ने हँसते हुए कहा।
देवता ने आखिरकार कहा, "अगर बंदर भी नहीं तो गधा ही बना दें। क्योंकि जब ठाकुरजी होली की लीला करते हैं तो ग्वालों को गधों पर बिठाकर दौड़ाते हैं।"
ब्रह्माजी ने कहा, "गधे भी खूब हैं, उनकी भी जगह पूरी भरी हुई है।"
देवता अब पेड़-पौधे बनाने की बात करने लगे। ब्रह्माजी बोले, "पेड़-पौधे भी जितने बनाना था, बना दिए। इतने कि सूर्य की किरणें भी बड़ी कठिनाई से धरती को छू पाती हैं।"
फिर देवताओं ने हाथ जोड़कर कहा, "महाराज! अगर हम अपने लिए कोई जगह खोज कर लाएं तो क्या हमें व्रज में भेज देंगे?"
ब्रह्माजी ने कहा, "हाँ, अगर तुम अपनी जगह खुद खोज कर ला सकते हो तो।"
देवताओं ने कहा, "व्रज की रेत तो असीमित है। और अगर कुछ नहीं तो बालकृष्ण के चरणों की धूलि बनना भी हमारे लिए परम कल्याणकारी होगा।"
इसलिए कहा जाता है कि ब्रज की रेत भी साधारण नहीं है, वह देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों और अन्य पवित्र आत्माओं से परिपूर्ण है।
यह कृष्ण भक्ति की एक अद्भुत और प्रेरक कथा है, जो हमें यह बताती है कि प्रभु के चरणों की धूलि तक बनने में भी कितनी दिव्यता और शुभता होती है।