जो चाहोगे वह पाओगे – तीन अमूल्य रत्नों की प्रेरक कथा

जो चाहोगे वह पाओगे – तीन अमूल्य रत्नों की प्रेरक कथा

"इच्छाएं सभी के जीवन में होती हैं। कोई पूरी हो जाती हैं, कोई अधूरी रह जाती हैं। लेकिन अगर सही दिशा, सही सोच और सही साधन मिल जाएं, तो कोई भी इच्छा अधूरी नहीं रह सकती।"

एक फकीर की रहस्यमयी पुकार

हर सुबह एक वृद्ध महात्मा नदी के किनारे बैठकर यही दोहराते –
"जो चाहोगे, वह पाओगे।"

लोग उन्हें पागल समझते, उपेक्षा करते, हँसते। पर वे कभी रुके नहीं।

एक दिन एक परदेसी युवक ने यह वाक्य सुना और ठिठक गया।
उसने महात्मा से पूछा –
"क्या आप सच में मेरी मनोकामना पूरी कर सकते हैं?"

महात्मा ने मुस्कराकर कहा –
"हां, लेकिन एक शर्त है – जो कुछ भी कहूं, उसे बिना सवाल किए मानना होगा।"

युवक ने कहा – "अगर मेरी इच्छा पूरी हो सकती है, तो मैं हर शर्त मानने को तैयार हूं।"

महात्मा ने पूछा – "क्या चाहते हो?"

युवक बोला – "मैं हीरों का प्रसिद्ध व्यापारी बनना चाहता हूं।"

महात्मा का उत्तर – दो अमूल्य रत्न

महात्मा ने युवक की हथेली पकड़ते हुए कहा –
"दाएं हाथ में मैं तुम्हें दुनिया का सबसे कीमती हीरा देता हूं – समय
इसे कसकर पकड़ो। इसका एक पल भी बर्बाद मत करो। यही सबसे बड़ा रत्न है।"

फिर उन्होंने उसके बाएं हाथ में कहा –
"यह है धैर्य – जब तुम समय का सही उपयोग करोगे, पर परिणाम नहीं आएंगे, तब यही धैर्य तुम्हें संभालेगा।"

युवक को शुरुआत में निराशा हुई, पर थोड़ी देर में उसने इस गूढ़ बात को समझा और संकल्प लिया कि वह समय और धैर्य को अपनाकर मेहनत करेगा।

चार वर्षों का संकल्प

महात्मा ने उसे चार साल का समय दिया और कहा – "चार साल बाद लौट कर बताना कि इन दो रत्नों से क्या पाया।"

युवक शहर गया, एक हीरे के व्यापारी के पास काम सीखा।
वह दिन-रात परिश्रम करने लगा। समय को कभी व्यर्थ नहीं जाने दिया।
शुरुआती संघर्ष के बाद भी वह डटा रहा।
चार वर्षों में वह सिर्फ कर्मचारी नहीं रहा, अब वह व्यापारी बनने की राह पर था।

तीसरा रत्न – संतोष

वह चार साल बाद महात्मा से मिलने लौटा, लेकिन वे अब इस संसार में नहीं थे।
उनके शिष्यों ने उसे एक घड़ा सौंपा। उसमें एक पर्ची थी।

पर्ची में लिखा था:

"तुम अब सफलता की ओर बढ़ चुके हो। तुम्हारे पास धन, अनुभव और ज्ञान है।
लेकिन अब एक चीज़ धीरे-धीरे तुम्हारे जीवन से जा सकती है – संतोष

इसलिए मैं तुम्हें तीसरा रत्न देता हूं – संतोष
इसे जीवनभर संभाल कर रखना। यही तुम्हारी सफलता को स्थायित्व देगा।"

जीवन का सार

जो लोग सफल होते हैं, उनके पीछे संघर्ष, तप और निरंतर प्रयास छिपे होते हैं।
सिर्फ चमक देखना आसान है, लेकिन उस चमक के पीछे की मेहनत को समझना असली बुद्धिमत्ता है।

यदि आप सच में कुछ पाना चाहते हैं, तो आज से इन तीन रत्नों को जीवन में उतार लें – समय, धैर्य और संतोष।
यही तीन रत्न आपकी सभी इच्छाओं को पूर्ण करने की शक्ति रखते हैं।