आरती: जानें इसका विधान, महत्व और ऊर्जा प्राप्ति की विधि

हिंदू धर्म में आरती को पूजा का सार और समापन माना गया है। स्कन्द पुराण में इसका उल्लेख करते हुए कहा गया है कि आरती बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। जब भक्त भावपूर्वक दीपक और स्तुति के साथ ईश्वर की आराधना करता है, तब उस प्रक्रिया को आरती कहते हैं। यह न केवल देवी-देवताओं के सम्मान का प्रतीक है, बल्कि एक ऊर्जावान क्षण भी होता है, जब वातावरण में दिव्यता अधिकतम होती है।
आरती के दौरान दीपक की लौ, मंत्रोच्चारण और घड़ी की दिशा में थाल का घुमाना — यह सब मिलकर एक ऐसा ऊर्जाचक्र बनाते हैं, जो नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। भावपूर्ण आरती, मन और आत्मा को एक विशेष प्रकार की शांति और ऊर्जा प्रदान करती है।
आरती एक विशिष्ट प्रक्रिया है, जिसे सही तरीके से करना जरूरी होता है। इसके लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए:
पूजा के अंत में ही आरती करें, केवल आरती करना उचित नहीं।
आरती से पहले मंत्र जाप, भजन या प्रार्थना अवश्य करें।
आरती के लिए थाल में घी या कपूर से प्रज्वलित दीपक रखें। घी का दीपक पवित्रता का, और कपूर अग्निशुद्धि का प्रतीक होता है।
दीपक पंचमुखी हो तो सर्वोत्तम माना गया है।
थाल में पूजा फूल और कुंकुम अवश्य रखें।
आरती करते समय थाल को इस प्रकार घुमाएं कि उसकी गति से ॐ की आकृति बने।
थाल को क्रमशः:
भगवान के चरणों में 4 बार
नाभि पर 2 बार
मुख पर 1 बार
सम्पूर्ण शरीर पर 7 बार घुमाएं।
आरती के बाद थाल में रखे फूल भगवान को अर्पित करें और श्रद्धापूर्वक तिलक लगाएं।
आरती केवल देखने या गाने का कार्य नहीं, यह ऊर्जा को आत्मसात करने की प्रक्रिया भी है। इसके लिए ध्यान रखें:
आरती के समय सिर को ढंका रखें, विशेषकर महिलाएं।
दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर पहले आंखों और फिर सिर के मध्य भाग (आज्ञा चक्र) पर लगाएं।
आरती के पश्चात कम से कम पाँच मिनट तक जल का स्पर्श न करें, ताकि ऊर्जा स्थिर हो सके।
दान दक्षिणा थाल में न डालें, बल्कि अलग रखे दान पात्र में ही रखें।
यह पूजा का पूर्ण और पवित्र समापन है।
इससे वातावरण शुद्ध और सकारात्मक बनता है।
भगवान की उपस्थिति का सीधा अनुभव होता है।
मानसिक एकाग्रता और भावनात्मक स्थिरता प्राप्त होती है।
घर-परिवार में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।
आरती कोई साधारण धार्मिक परंपरा नहीं, यह एक ऐसा सांसारिक और आध्यात्मिक सेतु है, जिससे हम ईश्वर से सीधे जुड़ते हैं। जब आरती भाव से की जाती है, तो यह मात्र दीप जलाना नहीं, बल्कि आत्मा को आलोकित करना होता है।
हर दिन की पूजा को आरती से पूर्ण करें — यह न केवल ईश्वर को समर्पण है, बल्कि स्वयं को ऊर्जा देने का श्रेष्ठ उपाय भी।
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