मिथुन लग्न की कुंडली में गुरु का फल
ग्रह स्थिति और स्वामित्व:
मिथुन लग्न कुंडली में गुरु सप्तम भाव (धर्मपत्नी/साझेदारी) और दशम भाव (कर्म, व्यवसाय) के स्वामी होते हैं। अतः गुरु इस लग्न में सम ग्रह माने जाते हैं — न पूर्ण शुभ, न पूर्ण अशुभ।
इनकी दशा में मिले-जुले परिणाम मिल सकते हैं। गुरु के शुभ होने पर यह जीवन में स्थिरता, भाग्यवृद्धि और मानसिक संतुलन प्रदान करते हैं।
रत्न धारण:
गुरु के लिए पुखराज (येलो सैफायर) रत्न धारण करने से पूर्व कुंडली का संपूर्ण ज्योतिषीय विश्लेषण अति आवश्यक है। गुरु यदि अशुभ भावों (6, 8, 12) में स्थित हों या पाप ग्रहों से पीड़ित हों तो पुखराज धारण करना नुकसानदेह हो सकता है।
गुरु के भाव अनुसार फल
1. प्रथम भाव में गुरु (मिथुन राशि में)
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जातक ज्ञानवान, धर्मनिष्ठ, पितृभक्त और प्रभावशाली होता है
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पुत्र प्राप्ति और विदेश यात्रा के योग
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वैवाहिक जीवन सुखद, साझेदारी लाभदायक
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स्वास्थ्य अच्छा और आत्मबल मजबूत
2. द्वितीय भाव में गुरु (कर्क राशि – उच्च स्थान)
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मधुर वाणी और प्रभावशाली व्यक्तित्व
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धन, परिवार, कुटुंब से सहयोग
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कोर्ट केस और विवादों में विजय
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प्रोफेशन में उन्नति
3. तृतीय भाव में गुरु
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परिश्रमी, धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति
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छोटे भाई-बहन से संबंध मधुर
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पिता के प्रति भक्ति
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दाम्पत्य में स्थिरता, लेकिन कार्यसिद्धि में विलंब
4. चतुर्थ भाव में गुरु
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भूमि, भवन, वाहन का सुख
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मातृसुख और पारिवारिक समृद्धि
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करियर में स्थिरता और वृद्धि
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विदेश यात्रा या सेटलमेंट का योग
5. पंचम भाव में गुरु
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संतान पक्ष से सुख
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बुद्धिमत्ता, आध्यात्मिकता, आकस्मिक लाभ
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बड़े भाई-बहनों से सहयोग
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संकल्प शक्ति मजबूत
6. षष्ठ भाव में गुरु (अशुभ स्थिति)
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रोग, ऋण, विरोधी सक्रिय
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कोर्ट केस, अस्पताल का खर्च
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पारिवारिक सहयोग की कमी
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करियर में अस्थिरता और धनहानि
7. सप्तम भाव में गुरु (स्वराशि - धनु)
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श्रेष्ठ दाम्पत्य जीवन
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व्यापार में सफलता, साझेदारों से लाभ
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छोटे भाई-बहन से मधुर संबंध
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बुद्धिमान और व्यावहारिक दृष्टिकोण
8. अष्टम भाव में गुरु
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मानसिक तनाव, बाधाएं, बुद्धि भ्रमित
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पारिवारिक और वित्तीय संकट
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व्यर्थ खर्च और स्थिरता की कमी
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यदि अन्य ग्रह शुभ हों तो विदेश से लाभ मिल सकता है
9. नवम भाव में गुरु (कुंभ राशि)
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धार्मिक प्रवृत्ति, पितृभक्ति
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भाग्य बलशाली, परिश्रमी
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पुत्र योग
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विदेश यात्रा के योग
10. दशम भाव में गुरु
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व्यवसाय और करियर में सफलता
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सम्मान और प्रतिष्ठा
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सामाजिक क्षेत्र में वृद्धि
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पिता से सहयोग
11. एकादश भाव में गुरु
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धनलाभ, बड़े भाई-बहन से सहयोग
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वाणी और संकल्प बल से उन्नति
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आकस्मिक लाभ और शुभ संतान योग
12. द्वादश भाव में गुरु (वृशभ राशि)
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खर्च अधिक, विदेश यात्रा के योग
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दाम्पत्य जीवन में दूरी
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कुछ कष्टों के बावजूद आध्यात्मिक लाभ
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यदि गुरु शुभ दृष्टि से युक्त हो, तो अच्छा परिणाम भी दे सकते हैं
उपसंहार
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मिथुन लग्न में गुरु का स्वामित्व उन्हें मिश्रित फलदाता ग्रह बनाता है।
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यदि गुरु बलवान, शुभ स्थिति में और पाप ग्रहों से मुक्त हों, तो पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है।
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अशुभ स्थिति में गुरु को दान, मंत्रजाप या व्रत से शांत करना चाहिए।
मंत्र: ॐ बृं बृहस्पतये नमः – प्रतिदिन 108 बार जाप करें।