मिथुन लग्न की कुंडली में राहु के विभिन्न भावों में फल
प्रथम भाव (लग्न) में राहु – मिथुन राशि
मिथुन राहु की उच्च राशि मानी जाती है। इस स्थिति में राहु प्रायः शुभ फल देता है। राहु की महादशा में जातक को अच्छा स्वास्थ्य मिलता है, संतान प्राप्ति के योग बनते हैं, अचानक लाभ होता है। दांपत्य जीवन सुखद रहता है और साझेदारी के कार्यों में सफलता मिलती है। जातक धार्मिक प्रवृत्ति वाला, विदेश यात्रा करने वाला और समाज में प्रतिष्ठित होता है।
द्वितीय भाव में राहु – कर्क राशि
कर्क राहु की शत्रु राशि है। इस स्थिति में राहु मानसिक अशांति, पारिवारिक कष्ट, धन की हानि और वाणी की कठोरता देता है। जातक को परिवार का सहयोग नहीं मिलता, प्रतियोगिताओं में असफलता और व्यावसायिक क्षेत्र में रुकावटें आती हैं।
तृतीय भाव में राहु – सिंह राशि
सिंह भी राहु की शत्रु राशि है। इस भाव में राहु छोटे-बड़े भाई-बहनों से तनाव देता है, भाग्य का साथ नहीं मिलता और जातक धार्मिक प्रवृत्ति से दूर हो सकता है। दांपत्य जीवन में परेशानी और साझेदारी में हानि होने की संभावना रहती है।
चतुर्थ भाव में राहु – कन्या राशि
यह राहु की मित्र राशि है। इस स्थिति में जातक को माता, भूमि, मकान और वाहन का सुख प्राप्त होता है। कार्यों में सफलता मिलती है, रुकावटें दूर होती हैं और विदेश में बसने की संभावनाएं बनती हैं।
पंचम भाव में राहु – तुला राशि
तुला शुक्र की राशि है और यहां राहु शुभ फल देता है। जातक अत्यंत बुद्धिमान, स्मरणशक्ति वाला और धार्मिक होता है। संतान प्राप्ति के अच्छे योग बनते हैं। अचानक लाभ और भाइयों-बहनों से मधुर संबंध रहते हैं। यदि बुध शुभ हो तो यह स्थिति अत्यंत लाभकारी होती है।
षष्ठम भाव में राहु – वृश्चिक राशि (नीच)
यह राहु की नीच राशि है और षष्ठ भाव में अशुभ प्रभाव देता है। कोर्ट केस, दुर्घटना, शत्रुओं से परेशानी, अस्पताल में खर्च और वाणी में कठोरता की स्थिति बनती है। पारिवारिक सहयोग में कमी आती है और कार्यक्षेत्र में रुकावटें आती हैं।
सप्तम भाव में राहु – धनु राशि (नीच)
धनु भी राहु की नीच राशि मानी जाती है। इस भाव में राहु वैवाहिक जीवन में तनाव, साझेदारी में विफलता, और अत्यधिक मेहनत के बावजूद मनचाहा परिणाम न मिलने का संकेत देता है। जातक का पारिवारिक जीवन भी असंतुलित हो सकता है।
अष्टम भाव में राहु
इस भाव में राहु रुकावटें, मानसिक तनाव, बुद्धि में भ्रम, पिता से मतभेद और अनावश्यक खर्च का कारण बनता है। सुख-सुविधाओं की कमी रहती है, परंतु विदेश में निवास की संभावना भी हो सकती है।
नवम भाव में राहु
यह स्थिति शुभ मानी जाती है। जातक बुद्धिमान, धार्मिक, पितृभक्त और संतानवान होता है। विदेश यात्रा और भाग्य का साथ मिलता है। परंतु यदि शनि अशुभ हो तो परिणाम विपरीत हो सकते हैं।
दशम भाव में राहु – मीन राशि
मीन में राहु मातृ सुख, भूमि, मकान और वाहन सुख में बाधा देता है। कार्यक्षेत्र में अनिश्चितता रहती है, प्रतियोगिता में असफलता और परिवार से मनमुटाव होता है।
एकादश भाव में राहु – मेष राशि
मेष राहु की शत्रु राशि है। इस स्थिति में राहु बड़े भाई-बहनों से दूरी, संतान में विलंब, स्वास्थ्य समस्या (विशेषकर पेट संबंधित) और धन हानि का कारण बनता है। राहु की महादशा में अचानक आर्थिक नुकसान की संभावना रहती है।
द्वादश भाव में राहु – वृष राशि (उच्च)
यह स्थिति खर्चों की वृद्धि, मानसिक तनाव, कोर्ट केस और अस्पताल में खर्च का संकेत देती है। प्रतियोगिताओं में असफलता, माता के सुख में कमी और घरेलू परेशानियाँ बनी रहती हैं। हालांकि विदेश यात्रा और वहाँ बसने की संभावना हो सकती है।
महत्वपूर्ण बातें और सावधानियाँ
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राहु की दृष्टि (5वीं, 7वीं और 9वीं) भी कुंडली के अन्य भावों को प्रभावित करती है।
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राहु के फल उसकी राशि, भाव, दृष्टि और युति करने वाले ग्रहों पर निर्भर करते हैं।
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राहु की नीच राशियों (वृश्चिक, धनु) या शत्रु राशियों में स्थिति अशुभ फल देती है।
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राहु यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में नीच या शत्रु राशि में हो तो गोमेध रत्न कदापि धारण न करें।
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राहु यदि मित्र राशि में हो तो उस राशि के स्वामी की स्थिति भी अवश्य देखें।
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राहु या केतु संबंधित रत्न केवल योग्य एवं अनुभवी ज्योतिषी की सलाह से ही धारण करें।