बृहस्पति देवता के जन्म की कहानी

बृहस्पति ग्रह
देवों के गुरु वृहस्पति का ज्योतिष ही नहीं अपितु जीव मात्र के जीवन पर गहरा प्रभाव है। इन्हें देवगुरु कहा जाता है। ज्योतिष में ऐसी मान्यता है की प्राणी मात्र के जीवन को सात गृह सूर्य, चंद्र, मंगल, गुरु, शनि व्बुध तथा दो अन्य गृह (राहुव्केतु) जिन्हें छाया गृह कहा जाता है विशेष रूप से प्रभावित करते हैं। सभी ग्रहों के अपने अपने एक या एक से अधिककारक भाव हैं, परन्तु गुरु अकेले ऐसे गृह हैं जो अकेले ही पांच भावों के कारक गृह के रूप में जाने जाते हैं। यह भी कहा जाता है की यदि आपको गुरु व्किसी अन्य गृह में से किसी एक को चुनना पड़ेया महत्त्व देना हो तो वृहस्पति गृह को ही चुनना श्रेयस्कर है। इन्हें ज्ञान प्रदान करने वाला एक शुभ गृह माना जाता है। इनकी कृपा से व्यक्ति में उचित निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। वरिष्ठ अधिकारियों का सहयोग प्राप्त होता है, व्यवसाय में उन्नति होती है। ज्योतिष में गुरु को द्विस्वभाव राशियों धनुव्मीन के स्वामी कहा जाता है। इन्हें एक तपस्वी ऋषि के रूप में जाना जाता है और तीक्ष्ण शृंग भी कहा जाता है। इनके हथियार धनुष बाण और सोने का परशु हैं और इनकी सवारी में ताम्ररंग के घोड़े जुते हुए होते हैं। अत्यंत पराक्रमी गुरु देवने इन्द्र को पराजित कर गायों को छुड़ाया था। ये अत्यंत परोपकारी कहे गए हैं जो शुद्धाचारण वाले व्यक्ति को संकटों से छुड़ाते हैं। इन्हें गृह पुरोहित की पदवी प्राप्त है व् इनके आशीष के बिना यज्ञ सफल नहीं होते हैं। ऋग्वेद में वर्णित है कि बृहस्पति बहुत सुंदर हैं। ये सोने से बने महल में निवास करते हैं। सभी सुख सुविधाएं संपन्न स्वर्ण निर्मित रथ इनका वाहन है जो सूर्य के समान दीप्ति मान कहा गया है। आइये जानते हैं ऐसे तेजस्वी देवगुरु वृहस्पति की कहानी
बृहस्पति की पौराणिक कथा भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक थे ऋषि अंगिरा जिनका विवाह स्मृति से हुआ कुछ इन्हें सुनी था भी बताते हैं। इन्हीं के यहां उतथ्य और जीव नामक दो पुत्र हुए। स्वभाव से शांत रहने वाले जीव बहुत ही बुद्धिमान थे। ऐसा कहा जाता है की इन्होंने इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी। जीव ने अपने पिता से शिक्षा प्राप्त की। कथा कहती है की इनके साथ ही भार्गव श्रेष्ठ कवि भी इनके पिता ऋषि अंगिरा से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। लेकिन अंगिरा पुत्र मोह के चलते अपने पुत्र जीव की शिक्षा पर अधिक ध्यान देने लगे जिस कारण कवी को नजरअंदाज होना पड़ा। इस भेदभाव को कवि ने महसूस कर लिया और उनसे शिक्षा पाने का निर्णय बदल लिया। वहीं जीव की शिक्षा अबाध रूप से चलती रही। जल्द ही जीव वेद शास्त्रों के ज्ञाता हो गये। पिता से शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात जीव ने प्रभाष क्षेत्र में शिवलिंग की स्थापना की और भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने हेतु कठोर साधना आरंभ कर दी। इनके कठिन तप से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने जीव को साक्षात दर्शन दिये। शिव ने कहा की मैं तुम्हारे तप से बहुत प्रसन्न हूं। उन्होंने आशीर्वाद दिया की अब तुम अपने ज्ञान से देवताओं का मार्गदर्शन करोगे और उन्हें धर्म, दर्शन व नीति का ज्ञान प्रदान करोगे। जगत में तुम देव गुरु ग्रह बृहस्पति के नाम से ख्याति प्राप्त करोगे। इस प्रकार आदिनाथ शिव शंकर की कृपा से इन्हें देव गुरु की पदवी प्राप्त हुयी और एवं नवग्रहों में स्थान प्राप्त हुआ।
गुरु ग्रह रहस्य वैदिक ज्योतिष
गुरुदेव को प्रस्सन कर इनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हों तो अपने गुरुजनों का सम्मान करें, पिता तुल्य व्यक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त करें साथ ही मांसमदिरा से बिलकुल दूर रहें, अपना आचरण शुद्ध रख्खें। अपने ईष्ट को कभी ना भूलें। आशा है आज का यह लेख आपके लिए लाभदायक रहेगा।