तीसरे सप्तऋषि: ऋषि भारद्वाज से जुड़ी 7 अद्भुत बातें जो बहुत कम लोग जानते हैं

तीसरे सप्तऋषि: ऋषि भारद्वाज से जुड़ी 7 अद्भुत बातें जो बहुत कम लोग जानते हैं

भारतीय सनातन परंपरा में सप्तऋषियों को ज्ञान, तपस्या और अध्यात्म का प्रतीक माना जाता है। इन सप्तऋषियों में से एक हैं ऋषि भारद्वाज, जिनका उल्लेख वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में विस्तार से मिलता है। ऋषि भारद्वाज न केवल एक महान तपस्वी और वेदों के ज्ञाता थे, बल्कि उन्होंने भारतीय विज्ञान, संस्कृति और इतिहास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

आइए जानते हैं ऋषि भारद्वाज से जुड़ी 7 ऐसी बातें जो शायद आप नहीं जानते होंगे:

1. नाम का रहस्य और पालन-पोषण

ऋषि भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। जन्म के समय माता-पिता में इस बात को लेकर विवाद हुआ कि संतान का पालन-पोषण कौन करेगा। दोनों ने एक-दूसरे से कहा "भरद्वाजमिमम्" (तुम इसे संभालो)। तभी से इस संतान का नाम भरद्वाज पड़ गया। आगे चलकर इनका पालन-पोषण वैशाली नरेश मरुत्त ने किया, जिन्हें पुराणों में एक देवता के रूप में वर्णित किया गया है।

2. राजा भरत के कुलगुरु

ऋषि भारद्वाज राजा भरत के कुल पुरोहित थे। दुष्यंत पुत्र राजा भरत ने अपना संपूर्ण राजपाठ भारद्वाज को सौंप दिया और स्वयं वन में तपस्या करने चले गए। यह दर्शाता है कि ऋषि न केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शक थे, बल्कि राजनीतिक मामलों में भी उनका गहरा हस्तक्षेप था।

3. तीन जन्मों तक किया वेद अध्ययन

तैत्तिरीय ब्राह्मण ग्रंथ में वर्णन है कि ऋषि भारद्वाज ने इन्द्र को तपस्या द्वारा प्रसन्न कर सौ-सौ वर्षों के तीन जन्मों का वरदान मांगा ताकि वे वेदों का पूर्ण अध्ययन कर सकें। तीन जन्मों के बाद भी जब वे पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं कर सके, तो चौथे जन्म का वर मांगा। तब इन्द्र ने उन्हें सवित्राग्रिचयन यज्ञ का सुझाव दिया, जिसके बाद जाकर उनकी जिज्ञासा शांत हुई।

4. श्रीराम से मुलाकात

रामायण के अनुसार जब श्रीराम वनवास के दौरान दंडकारण्य पहुंचे, तो वे ऋषि भारद्वाज के आश्रम में गए। ऋषि ने श्रीराम से अनुरोध किया कि वे उनके आश्रम में ही निवास करें, लेकिन श्रीराम ने चित्रकूट को अपना निवास स्थान चुना। रावण वध के बाद भी श्रीराम पुनः उनके आश्रम में आए थे, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारद्वाज श्रीराम के विशेष प्रिय थे।

5. परिवार और वंश परंपरा

ऋषि भारद्वाज की पत्नी का नाम सुशीला था। उनके पुत्र का नाम गर्ग और पुत्री का नाम देववर्षिणि था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, उनकी दो और पुत्रियां थीं — इलविदा और कात्यायनी, जिन्होंने क्रमशः विश्रवा ऋषि और याज्ञवल्क्य से विवाह किया। एक अन्य कथा के अनुसार, वे अप्सरा घृताची पर मोहित हो गए थे, जिनसे द्रोणाचार्य का जन्म हुआ। द्रोण का जन्म पत्तों के दोने पर हुआ था, इसीलिए उनका नाम द्रोण पड़ा।

6. ऋग्वेद और अन्य ग्रंथों में योगदान

ऋषि भारद्वाज ऋग्वेद के छठे मंडल के दृष्टा माने जाते हैं। इस मंडल में उनके 765 मंत्र हैं। अथर्ववेद में भी उनके 23 मंत्र मिलते हैं। उन्होंने ‘भारद्वाज-स्मृति’ और ‘भारद्वाज-संहिता’ की भी रचना की थी, जो सामाजिक, धार्मिक और नैतिक नियमों का वर्णन करती हैं।

7. प्राचीन विमान शास्त्र के जनक

ऋषि भारद्वाज ने ‘यन्त्र-सर्वस्व’ नामक ग्रंथ की रचना की थी, जिसका एक अंश ‘विमान शास्त्र’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें उन्होंने विमान की परिभाषा दी —
"वेग-संयत् विमानो अण्डजानाम्" — अर्थात पक्षियों के समान वेग से चलने वाला यंत्र।

इस ग्रंथ में विमानचालक (पायलट) के लिए 32 रहस्यों का ज्ञान अनिवार्य बताया गया है। यह माना जाता है कि जब तक कोई इन रहस्यों को नहीं जानता, वह विमान संचालन का अधिकारी नहीं हो सकता।

निष्कर्ष

ऋषि भारद्वाज केवल एक साधारण ऋषि नहीं थे। वे वेदज्ञ, दार्शनिक, वैज्ञानिक और राजनीतिक सलाहकार थे। उनका जीवन न केवल अध्यात्म की गहराई को दर्शाता है, बल्कि विज्ञान और सामाजिक व्यवस्था में उनके योगदान को भी रेखांकित करता है।

सप्तऋषियों में उनका स्थान इसलिए विशिष्ट है क्योंकि उन्होंने हर क्षेत्र में ज्ञान का प्रकाश फैलाया।