प्रथम भाव-लग्न भाव क्या है
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भारतीय हिन्दू वैदिक ज्योतिष में प्रथम भाव को कई नामों से जाना जाता है. इस भाव को लग्न भाव, केन्द्र भाव व त्रिकोण भाव भी कहा जाता है. लग्न भाव कुण्डली का बल होता है. और अन्य सभी भावों की तुलना में इसका सबसे अधिक महत्व है. लग्न और लग्नेश पर बाधकेश ग्रह का प्रभाव हो, तो व्यक्ति का स्वास्थय प्रभावित होता है. लग्न भाव में कोई अस्त ग्रह सामान्य उन्नति और वैवाहिक जीवन पर बुरा प्रभाव डालता है.
उदय होने वाला लग्न जितना शुभ होगा, उतना ही व्यक्ति लम्बा जीवन व्यतीत करेगा. यह योग व्यक्ति को सुख-सम्मान प्राप्त करने में सहयोग करता है. और व्यक्ति को खुशहाल परिस्थितियों से घिरा रहेगा. इसके अलावा लग्न, लग्नेश से दृ्ष्ट हो तो व्यक्ति धनवानों में भी धनवान होता है. ऎसा व्यक्ति अपने कुल का दीपक होता है.
लग्न भाव की विशेषताएं कौन सी है
लग्न भाव जिस व्यक्ति की कुण्डली है, उस व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. इस भाव से स्वास्थय, दीर्घायु, खुशियां, शारीरिक बनावट, चरित्र, कद-काठी, प्रवृ्ति, शारीरिक गठन, जन्मजात स्वभाव, ज्ञान, आनन्द, समृ्द्धि, स्थिति, स्वभाव, आत्मसम्मान, व्यक्तित्व, तेज, स्फुर्ति, प्रयासों में सफलता, विफलता, समान्य रुप से व्यक्ति के स्वाभाविक गुण, प्रश्न करने वाला व्यक्ति, प्रसिद्धि, जीवन के प्रारम्भ, बचपन, बाल, आयु, वातावरन, भौतिक शरीर.
प्रथम भाव की कारक वस्तुएं कौन सी है
प्रथम भाव में सूर्य होने पर व्यक्ति के स्वास्थय सुख में वृ्द्धि होती है. ऎसा व्यक्ति ओजस्वी, और दिर्घायु वाला होता है. इस भाव में चन्द्र शरीर का कारक होता है. मंगल प्रथम भाव में कपाल और खोपडी का कारक ग्रह है.
प्रथम भाव का स्थूल रुप में क्या दर्शाता है
प्रथम भाव स्थूल रुप में भौतिक शरीर दर्शाता है.
लग्न भाव से सूक्ष्म रुप में क्या दर्शाता है
प्रथम भाव सूक्ष्म रुप में स्वास्थय और शारीरिक गठन का विश्लेषण करता है.
लग्न भाव कौन से रिश्तों का प्रतिनिधित्व करता है
प्रथम भाव से रिश्तेदारों में सगे-सम्बन्धियों में नानी, दादी का विश्लेषण करने के लिए प्रयोग किया जाता है.