भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग – 12 शिव ज्योतिर्लिंगों में षष्ठम की दिव्य गाथा

भारत के पुण्यभूमि महाराष्ट्र की घने जंगलों से घिरी पर्वत श्रृंखलाओं में स्थित है वह पावन स्थान जहाँ स्वयं महादेव ने राक्षसी शक्ति का अंत कर धर्म की स्थापना की — यही है भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में षष्ठम (छठा) स्थान रखता है। यह स्थल केवल पूजा का केंद्र नहीं, अपितु वह ऊर्जा क्षेत्र है जहाँ भक्त शिव की महाशक्ति का साक्षात्कार करते हैं।
भीमाशंकर का स्थान और प्राकृतिक सौंदर्य
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य के पुणे जनपद में, सह्याद्रि की पर्वतमालाओं के मध्य, समुद्र तल से लगभग 3250 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर भीमा नदी के उद्गम स्थल के पास स्थित है, और कहा जाता है कि इस नदी की उत्पत्ति शिव की शक्ति से हुई है।
यह क्षेत्र आज भी हरियाली, गूंजते जलप्रपातों और दुर्लभ जीवों से समृद्ध भीमाशंकर अभयारण्य का भाग है, जहाँ आस्था और प्रकृति का अद्भुत संगम होता है।
भीमाशंकर की पौराणिक कथा
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कथा अत्यंत रोचक और धर्म की विजय का प्रतीक है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, भीमक नामक एक राक्षस था, जो कुम्भकर्ण (रावण के भाई) और कर्कटी राक्षसी का पुत्र था। जब भीमक को यह ज्ञात हुआ कि उसके पिता को भगवान राम (जो भगवान विष्णु के अवतार थे) ने मारा था, तब उसने प्रतिशोध की भावना से तपस्या कर ब्रह्मा से शक्ति प्राप्त की।
शक्तिशाली होने पर उसने धर्म का नाश करना शुरू किया और स्वयं भगवान विष्णु के भक्त – राजा कमरूपेश्वर को बंदी बना लिया। राजा ने शिव की अनन्य भक्ति से राक्षस के बंदीगृह में भी शिवलिंग की पूजा बंद नहीं की। जब भीमक राजा को मारने चला, तभी शिव स्वयं प्रकट हुए और भीमक का वध किया।
शिव के इसी उग्र रूप और प्रकट होने के स्थल पर ही भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई।
भीमा नदी की उत्पत्ति
मान्यता है कि जब शिव ने भीमक राक्षस का संहार किया, तब उनका क्रोध इतना प्रचंड था कि उनके शरीर से पसीना बहने लगा और वही पसीना भीमा नदी के रूप में प्रवाहित हुआ। यह नदी आगे चलकर कृष्णा नदी में मिलती है और जीवनदायिनी बन जाती है।
भीमाशंकर मंदिर का स्थापत्य और इतिहास
- यह मंदिर नागर शैली में निर्मित है और इसमें मध्यकालीन तथा मराठा वास्तुकला का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है।
- गर्भगृह में स्थित शिवलिंग स्वयंभू (स्वतः प्रकट) माना जाता है।
- मंदिर के आसपास घने जंगल और पवित्र नदी का संगम इसे आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र बनाता है।
- मंदिर का वर्तमान रूप नाना फडणवीस के संरक्षण में 18वीं सदी में विकसित हुआ।
भीमाशंकर अभयारण्य – धर्म और प्रकृति का मेल
भीमाशंकर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण वन्यजीव अभयारण्य भी है। यहाँ पाए जाने वाले प्रमुख जीवों में से मालाबार जायंट स्क्विरल (विशाल गिलहरी) विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इसके अलावा यह क्षेत्र कई दुर्लभ औषधीय वनस्पतियों, पक्षियों और प्राचीन वृक्षों से भरा हुआ है।
इस तरह यह स्थल आध्यात्मिक साधना, पर्यावरणीय संतुलन और जैव विविधता का दुर्लभ संगम प्रस्तुत करता है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की पूजा और विशेष पर्व
यहाँ प्रतिदिन प्रातः और संध्या आरती होती है। विशेष रूप से श्रावण मास, महाशिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा, और गुरुपूर्णिमा के समय लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन हेतु आते हैं।
प्रदोष व्रत, सोमवार व्रत, तथा शिव-पार्वती विवाह उत्सव आदि भी यहाँ बड़े उल्लास से मनाए जाते हैं।
भीमाशंकर यात्रा – श्रद्धा की कठिन राह
भीमाशंकर तक पहुँचना श्रद्धालुओं के लिए एक तप की तरह होता है। पुणे से लगभग 110 किमी की दूरी पर यह मंदिर स्थित है। यात्री:
- सड़क मार्ग से घोड़ेघाट, राजगुरुनगर, नारायणगांव होते हुए यहाँ पहुँच सकते हैं।
- पैदल यात्रा या ट्रैकिंग करने वाले भक्त सिद्धगड, गणेश घाट, या शिदे घाट से कठिन चढ़ाई के माध्यम से मंदिर पहुँचते हैं।
यह यात्रा केवल शरीर से नहीं, हृदय और आत्मा से भी की जाती है।
भीमाशंकर – जहाँ राक्षसी शक्ति पर शिव की दिव्यता विजयी होती है
भीमाशंकर की कथा हमें सिखाती है कि जब धर्म संकट में होता है, तब स्वयं शिव प्रकट होकर अधर्म का संहार करते हैं। यह स्थल आज भी उसी दिव्य गाथा का स्मरण कराता है – जहाँ भगवान शिव ने प्रकट होकर अधर्म पर धर्म की विजय स्थापित की थी।
यहाँ शिव केवल पूजा की मूर्ति नहीं,
बल्कि धर्म के रक्षक और समय के साक्षी हैं।
भीमाशंकर में शिव की प्रत्येक गूँज धर्म की जयघोष करती है।