महास्नान के बाद बीमार हुए भगवान जगन्नाथ, मंदिर में दर्शन बंद 27 जून से होगी भव्य रथयात्रा की शुरुआत

पुरी की पवित्र धरती पर हर साल होने वाला भगवान जगन्नाथ का महास्नान, केवल एक परंपरा नहीं बल्कि ईश्वर और भक्त के रिश्ते की सबसे संवेदनशील और आध्यात्मिक अभिव्यक्ति है। इस दिन भगवान स्वयं स्नान करते हैं, फिर मानो मानवता से जुड़ने के लिए बीमार पड़ते हैं, विश्राम करते हैं, और फिर पुनः नवयुवक रूप में प्रकट होकर रथ पर सवार हो भक्तों को मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं। यह पूरी प्रक्रिया केवल धार्मिक अनुष्ठानों की शृंखला नहीं, बल्कि श्रद्धा, सेवा और प्रतीक्षा का एक गहन पर्व है — जो हर भक्त को ईश्वर से जोड़ता है, उनकी लीलाओं की अनुभूति कराता है और जीवन के गहरे अर्थों से अवगत कराता है।
महास्नान से शुरू होती है रथयात्रा की पवित्र यात्रा
पुरी, उड़ीसा का जगन्नाथ मंदिर इन दिनों एक विशेष आध्यात्मिक और परंपरागत माहौल से सराबोर है। स्नान पूर्णिमा के शुभ अवसर पर भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का भव्य स्नान उत्सव मनाया गया। यही दिन रथयात्रा की शुरुआत का प्रथम अध्याय माना जाता है।
स्नान के बाद भगवान होते हैं ‘बीमार’ — एकांतवास की परंपरा
भगवान जगन्नाथ का स्नान सोने की ईंट वाले पवित्र कुएं के जल से होता है, जिसमें सभी तीर्थों का जल मिला माना जाता है। स्नान के बाद भगवान को ज्वर हो जाता है, जिसके कारण वे भक्तों से दूर अनवसर वास या एकांतवास में चले जाते हैं। यह प्रक्रिया पूरी तरह वैदिक और परंपरागत औषधीय प्रणाली के अनुसार होती है।
मंदिर के कपाट बंद, भगवान की होती है विशेष सेवा
इस अवधि में मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। किसी भी भक्त को दर्शन की अनुमति नहीं होती। केवल चुनिंदा सेवक और वैद्य ही भगवान की सेवा करते हैं। उन्हें श्वेत सूती वस्त्र पहनाए जाते हैं, आभूषण हटा लिए जाते हैं और भोजन में केवल फल, दलिया, रस और जड़ी-बूटियों से बनी औषधियाँ दी जाती हैं।
नीम-हल्दी के काढ़े से होती है सेवा, औषधीय मोदक चढ़ाए जाते हैं
भगवान को स्वस्थ करने के लिए खास तेल मंगवाया जाता है जिससे उनकी मालिश की जाती है। औषधियों में नीम, हल्दी, बहेड़ा, हरड़, लौंग आदि मिलाकर तैयार किया गया काढ़ा और मोदक उन्हें अर्पित किए जाते हैं। यह सेवा 15 दिनों तक चलती है।
25 जून को होगी भगवान की पुनः सजावट, 26 को नवयौवन दर्शन
भगवान के ठीक होने के बाद 25 जून को उन्हें फिर से सजाया जाएगा। इसके बाद 26 जून को भक्तों को “नवयौवन दर्शन” का सौभाग्य मिलेगा — एक ऐसा दृश्य जब भगवान एक युवा रूप में अपने भक्तों के सामने पहली बार एकांतवास के बाद प्रकट होते हैं।
27 जून को प्रारंभ होगी रथयात्रा: मोक्ष का पर्व
और फिर 27 जून को उस महान रथयात्रा का शुभारंभ होगा, जिसका इंतज़ार हर श्रद्धालु करता है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने भव्य रथों में बैठकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करेंगे। यह यात्रा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक मोक्षदायी पर्व मानी जाती है। कहा जाता है, जो व्यक्ति इस रथ को खींचता है, वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त करता है।
श्रद्धा, सेवा और प्रतीक्षा का पर्व
पुरी की रथयात्रा दर्शाती है कि ईश्वर भी इंसान की तरह विश्राम करते हैं, बीमार पड़ते हैं और फिर ठीक होकर भक्तों के बीच लौटते हैं। यह परंपरा भक्तों को न केवल ईश्वर से जोड़ती है, बल्कि सेवा, प्रेम और प्रतीक्षा की गहराई भी सिखाती है।