वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग – 12 शिव ज्योतिर्लिंगों में नवम की दिव्य गाथा

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग – 12 शिव ज्योतिर्लिंगों में नवम की दिव्य गाथा

जिस स्थान पर स्वयं भगवान शिव ने अपने भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर साक्षात वैद्य (चिकित्सक) रूप धारण किया, जहाँ शिव ने जीवनदायिनी कृपा बरसाई और अमरत्व का वरदान दिया — वही है वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, जिसे 12 शिव ज्योतिर्लिंगों में नवम स्थान प्राप्त है। यह स्थल भक्तों के लिए रोगों से मुक्ति, भक्ति की सिद्धि और मोक्ष का मार्ग प्रदान करता है।

वैद्यनाथ धाम का स्थान और महत्व

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के झारखंड राज्य के देवघर नगर में स्थित है। कुछ मान्यताओं के अनुसार एक अन्य वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग परली वैजनाथ (महाराष्ट्र) में भी स्थित है, परंतु प्राचीन शास्त्रों और मान्यताओं के अनुसार देवघर स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को ही प्रामाणिक रूप से मान्यता प्राप्त है।

यह धाम प्राचीन समय से ही रोगनाशक शिव रूप, आयुर्वेदिक वैद्य रूप और कल्याणकारी महादेव की उपासना का स्थान रहा है।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

यह ज्योतिर्लिंग रावण की शिवभक्ति की अमर गाथा से जुड़ा हुआ है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार:

  • लंका का राजा रावण, जो शिव का महान उपासक था, उसने शिव को प्रसन्न करने के लिए भीषण तपस्या की।
  • रावण ने अपनी 10 में से एक शीश को काटकर शिव को अर्पित कर दिया। जब वह 11वां शीश काटने को हुआ, तब शिव प्रकट हुए और उससे प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया।
  • रावण ने शिव से लंका में ज्योतिर्लिंग स्थापित करने की अनुमति मांगी।
  • शिव ने यह वर दिया पर एक शर्त रखी — वह लिंग धरती पर जहाँ भी रखा जाएगा, वहीं स्थायी रूप से स्थापित हो जाएगा।
  • रावण जब लिंग लेकर लंका जा रहा था, तो देवताओं ने भयवश वरुण देव को प्रेरित कर उसके पेट में वेगपूर्ण जल भरवा दिया।
  • रावण को लघुशंका हेतु रुकना पड़ा और उसने एक ग्वाले के रूप में भगवान विष्णु के अवतार से लिंग को पकड़ने को कहा।
  • जब रावण लघुशंका से लौटकर आया, तब तक उस बालक (विष्णु) ने लिंग को धरती पर रख दिया। रावण ने बहुत प्रयास किया पर लिंग को हिला न सका।
  • इस प्रकार वह शिवलिंग देवघर (झारखंड) में स्थायी रूप से प्रतिष्ठित हो गया, और भगवान शिव यहाँ वैद्यनाथ कहलाए — क्योंकि उन्होंने रावण के कटे हुए अंगों को चिकित्सक रूप में पुनः जोड़ा था।

वैद्यनाथ मंदिर की बनावट और परंपरा

  • मंदिर परिसर में मुख्य गर्भगृह के साथ-साथ 21 अन्य मंदिर हैं — जिनमें बासुकीनाथ, काली माता, गणेश, अन्य देवी-देवता पूजित हैं।
  • गर्भगृह में स्थित शिवलिंग स्वयंभू और अति प्राचीन है, जिसे 'कामना लिंग' भी कहा जाता है।
  • मंदिर की वास्तुकला नागर शैली की है और यह पंचशिखर निर्माण पर आधारित है।
  • श्रद्धालु यहाँ कांवर यात्रा द्वारा गंगाजल लाकर जलाभिषेक करते हैं।

श्रावण मास और वैद्यनाथ की कांवर यात्रा

  • श्रावण मास में वैद्यनाथ मंदिर में देशभर से लाखों श्रद्धालु सुल्तानगंज (बिहार) से गंगाजल लेकर पैदल यात्रा करते हुए देवघर पहुंचते हैं।
  • इस यात्रा को "श्रावणी मेला" कहा जाता है, जो विश्व की सबसे बड़ी धार्मिक पदयात्राओं में से एक है।
  • कांवरियों का उद्घोष "बोल बम" से गूंजता है और पूरा देवघर शिवमय हो उठता है।

यहाँ शिव हैं – रोगों के नाशक, जीवन के वैद्य

वैद्यनाथ शिवलिंग के दर्शन मात्र से शारीरिक और मानसिक रोग दूर हो जाते हैं — ऐसी श्रद्धा है। आयुर्वेदाचार्यों और साधकों ने इसे रोग शमन का तपस्थल माना है।

यहाँ अनेक लोग दीर्घकालिक रोग, मन:शांति, संतान प्राप्ति, विवाह बाधा, और कालसर्प दोष जैसे कारणों से भी शिव का पूजन करते हैं।

देवघर – केवल तीर्थ नहीं, दिव्यता का अनुभव

देवघर को प्राचीन काल से हरिहर क्षेत्र कहा जाता है, क्योंकि यहाँ भगवान शिव (हर) और भगवान विष्णु (हरि) दोनों की कृपा एकत्र रूप में विद्यमान है।

यहाँ की भूमि, वातावरण, मंदिर परिसर, श्रद्धालुओं की भावना – सब मिलकर इस स्थान को एक आध्यात्मिक चिकित्सा केंद्र बना देते हैं।

वैद्यनाथ केवल शिवलिंग नहीं,
यह श्रद्धा का संबल है।
यहाँ शिव, रोगी को रोगमुक्त कर
जीवन में नवचेतना भरते हैं।
यहाँ भक्त रावण की भक्ति और शिव की कृपा
साक्षात रूप में प्रकट होती है।