नरसिंह अवतार: भक्त प्रह्लाद की अमर भक्ति और अधर्म पर धर्म की विजय

नरसिंह अवतार: भक्त प्रह्लाद की अमर भक्ति और अधर्म पर धर्म की विजय

प्रस्तावना

हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के दस अवतारों (दशावतार) में से नरसिंह अवतार सबसे अद्भुत, रहस्यमयी और प्रेरणादायक माना जाता है। यह वह अवतार है जिसमें भगवान विष्णु ने आधा सिंह और आधा मानव रूप में अवतार लिया, केवल एक बालक की भक्ति के रक्षण हेतु, और अधर्मी राक्षस हिरण्यकशिपु का विनाश किया।
यह कथा केवल असुर के अंत की नहीं, बल्कि यह भक्ति, धर्म, साहस, और सत्य की अमर गाथा है — जिसमें यह सिद्ध होता है कि सच्चे भक्त की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं, चाहे ब्रह्मांड को तोड़ना पड़े।

हिरण्यकशिपु का अभिमान और अत्याचार

हिरण्यकशिपु एक शक्तिशाली असुर था, जिसने भगवान ब्रह्मा से वर प्राप्त किया कि वह न किसी मानव से मरेगा, न किसी पशु से, न दिन में, न रात में, न आकाश में, न पृथ्वी पर, न अस्त्र से, न शस्त्र से। यह वर पाकर वह अहंकार में चूर हो गया। उसने स्वयं को भगवान घोषित कर दिया और आदेश दिया कि अब सभी लोग केवल उसकी पूजा करें। जिन्होंने इंकार किया, उन्हें कष्ट दिया गया। लेकिन उसी के घर में जन्मा उसका पुत्र प्रह्लाद, विष्णु का परम भक्त निकला। यह उसके लिए सबसे बड़ा अपमान था।

प्रह्लाद की भक्ति

प्रह्लाद ने बाल्यावस्था से ही हर पल भगवान विष्णु का जाप किया। उसने कहा:

"भगवान सर्वत्र हैं, और वही मेरे इष्ट हैं। मैं पिता के आदेश की नहीं, सत्य धर्म की आज्ञा का पालन करूँगा।"

हिरण्यकशिपु ने उसे बार-बार समझाया, धमकाया, पर प्रह्लाद की भक्ति अडिग रही। तब उसने उसे मारने के कई प्रयास किए:

  • विशाल हाथी के पैरों तले कुचलवाना
  • ज़हर देना
  • सांपों के बीच डालना
  • अग्नि में जलाना

हर बार प्रह्लाद बच गया। भगवान विष्णु उसकी रक्षा करते रहे।

होलिका दहन की कथा

हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। उसने प्रह्लाद को गोदी में लेकर अग्नि में प्रवेश किया, पर प्रह्लाद बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई। यह घटना होलिका दहन के रूप में आज भी होली पर्व पर मनाई जाती है — जहाँ अधर्म का अंत और धर्म की विजय का प्रतीक जलाया जाता है।

नरसिंह अवतार का प्राकट्य

जब हिरण्यकशिपु ने क्रोधित होकर पूछा:

“क्या तेरा विष्णु इस खंभे में भी है?”
प्रह्लाद ने निडर होकर कहा:
“हाँ, वे सर्वत्र हैं।”

हिरण्यकशिपु ने क्रोध में खंभे को तोड़ा, और तभी उस खंभे से एक भयानक गर्जना के साथ प्रकट हुए — आधे मानव और आधे सिंह रूप में भगवान नरसिंह

वे न दिन थे, न रात (संध्या समय)
वे न पृथ्वी पर थे, न आकाश में (गोद में उठाकर)
वे न मानव थे, न पशु
वे न अस्त्र से मारे, न शस्त्र से (नाखूनों से मारा)

इसी प्रकार उन्होंने ब्रह्मा के वर को अक्षुण्ण रखते हुए हिरण्यकशिपु का अंत किया।

नरसिंह रूप की भयावहता

नरसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु की छाती को फाड़कर उसे मृत्यु दी। उनकी आंखों से अग्नि निकल रही थी, शेर जैसे मुख से गर्जना हो रही थी। देवताओं तक भयभीत हो गए। कोई उन्हें शांत न कर सका।

तब प्रह्लाद ने आगे बढ़कर विनम्रता से कहा:

“प्रभु, अब आप शांत हो जाइए। आपने अधर्म का अंत कर दिया है। भक्त की रक्षा कीजिए।”

भगवान नरसिंह ने प्रह्लाद को गोद में लिया और आशीर्वाद दिया:

“तू मेरा अचल भक्त है। तेरा नाम युगों-युगों तक लिया जाएगा।”

भक्त प्रह्लाद: भक्ति का प्रतीक

प्रह्लाद की भक्ति अडिग, निर्विकार और पूर्ण समर्पित थी। वह ना केवल धर्म को जानता था, बल्कि उसको जीता था। उसने यह सिद्ध किया कि:

  • सत्य की राह कठिन हो सकती है, पर अंत में विजय सत्य की होती है।
  • ईश्वर की भक्ति बचपन से की जाए, तो जीवन सार्थक होता है।
  • भक्ति केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि अपने आचरण में भी होती है।

नरसिंह उपासना का प्रभाव

नरसिंह भगवान को विशेष रूप से रक्षा के देवता माना जाता है। तांत्रिक और वैदिक दोनों मार्गों में उनकी पूजा की जाती है।

  • उन्हें उग्र रूप में माना जाता है — जो भूत, प्रेत, दुष्ट आत्माओं से रक्षा करते हैं।
  • उनका मंत्र जप विशेष रूप से भय, चिंता, और मानसिक असुरक्षा से मुक्त करता है:

“उग्रं वीरं महा विष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युर्मृत्युम् नमाम्यहम्॥”

यह मंत्र भय नाशक और रोग विनाशक माना गया है।

नरसिंह जयंती और परंपरा

नरसिंह भगवान का प्राकट्य दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को मनाया जाता है — जिसे नरसिंह जयंती कहते हैं। इस दिन उपवास, विष्णु सहस्रनाम, और नरसिंह मंत्र का जप किया जाता है।

भक्त प्रह्लाद के बाद

प्रह्लाद को बाद में असुरों का राजा बनाया गया, पर उसने धर्म और न्याय का पालन किया। उसके वंश में बाद में बलि जैसा महादानी राजा भी हुआ, जिसके लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया।

आध्यात्मिक संदेश

नरसिंह अवतार केवल एक चमत्कारी कथा नहीं है — यह मानवता को गहन संदेश देता है:

  • जब अन्याय अपनी सीमा पार करता है, तब ईश्वर प्रकट होते हैं।
  • ईश्वर हर जगह हैं — खंभे में, हवा में, विचारों में, चेतना में।
  • सच्ची भक्ति में भय नहीं होता। उसमें साहस और श्रद्धा होती है।
  • भगवान की कृपा के सामने कोई अभिमान, शक्ति, या अहंकार टिक नहीं सकता।

उपसंहार

नरसिंह अवतार हमें यह शिक्षा देता है कि धर्म की विजय सुनिश्चित है, चाहे कितना भी बड़ा असुर सामने क्यों न हो। और जो भक्ति में रमे हैं, उनके लिए स्वयं भगवान अवतार लेने में संकोच नहीं करते। आज के समय में जब अधर्म और अन्याय के अनेक रूप हमारे आसपास हैं, हमें प्रह्लाद जैसा साहस और नरसिंह जैसा संकल्प चाहिए। क्योंकि हर युग में ईश्वर उसी के साथ खड़े होते हैं — जो सत्य और धर्म के साथ खड़ा हो।