क्रोध ज्ञान का नाश कर देता है: आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के शास्त्रार्थ की कथा

श्री आदि शंकराचार्य का जीवन वेदों और सनातन धर्म के उत्थान के लिए समर्पित था। उन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा और उसके प्रचार-प्रसार में अतुलनीय योगदान दिया। उनके अद्भुत ज्ञान और वाक्पटुता का प्रमाण उनकी एक प्रसिद्ध कथा है, जो उनके और महामनीषी मंडन मिश्र के बीच हुए शास्त्रार्थ से जुड़ी है।
शास्त्रार्थ का आरंभ और निर्णायक का चयन
आदि शंकराचार्य मंडन मिश्र के घर शास्त्रार्थ के लिए पहुँचे। जब लोगों से मंडन मिश्र के घर का पता पूछा, तो कहा गया, "जिस दरवाजे पर तोते भी शास्त्रार्थ करते दिखें, वही मंडन मिश्र का घर है।" दोनों विद्वान इस शास्त्रार्थ के लिए तैयार हुए। लेकिन सवाल था कि इस शास्त्रार्थ का निर्णायक कौन होगा?
शंकराचार्य ने मंडन मिश्र की पत्नी, विदुषी भारती देवी का नाम सुझाया क्योंकि वे भी विद्वान थीं और निष्पक्ष निर्णय कर सकती थीं। भारती देवी ने इस चुनौती को स्वीकार किया।
शास्त्रार्थ और निर्णायक माला
शास्त्रार्थ लगातार सोलह दिन तक चला। भारती देवी को बीच में कुछ कार्य के लिए बाहर जाना पड़ा। उन्होंने दोनों विद्वानों के गले में एक-एक फूलों की माला डाली और कहा, "मेरी अनुपस्थिति में ये माला आपके हार-जीत का फैसला करेंगी।"
जब वे वापस लौटीं, तो उन्होंने दोनों की माला देखकर निर्णय दिया कि आदि शंकराचार्य विजेता हैं। मंडन मिश्र की माला उनके क्रोध के कारण मुरझा चुकी थी, जबकि शंकराचार्य की माला ताजी और सुंदर बनी हुई थी।
क्रोध और ज्ञान का नाश
भारती देवी ने समझाया कि जब कोई व्यक्ति हार का सामना करता है, तो उसमें क्रोध उत्पन्न हो जाता है। क्रोध से शरीर का ताप बढ़ जाता है, जिससे शांति और बुद्धि छीन जाती है। मंडन मिश्र के क्रोध में आने के कारण उनकी माला की हालत खराब हो गई, और इसी से विदुषी ने हार-जीत का निर्णय किया।
यह बात दर्शाती है कि क्रोध न केवल व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है, बल्कि उसके ज्ञान और निर्णय क्षमता को भी नष्ट कर देता है।
शास्त्रार्थ का गूढ़ संदेश
इस कथा से हमें यह महत्वपूर्ण शिक्षा मिलती है कि:
-
क्रोध अज्ञानता और विनाश का मार्ग है।
-
शांति और संयम ही सच्चे ज्ञान और बुद्धि का स्रोत हैं।
-
हार-जीत से ऊपर उठकर धैर्य और विवेक से निर्णय लेना चाहिए।
-
पति-पत्नी का सहयोग और एकता भी जीवन में सफलता का आधार है।
भारती देवी ने शंकराचार्य को कहा कि उनकी जीत अभी आधी है क्योंकि पति-पत्नी मिलकर पूर्ण होते हैं। इस प्रकार शास्त्रार्थ की जटिलता और जीवन के संघर्षों में संयम, धैर्य और सहनशीलता का महत्व स्पष्ट होता है।
निष्कर्ष:
क्रोध एक ऐसा विकार है जो मनुष्य के ज्ञान और विवेक को नष्ट कर देता है। इसलिए, जीवन में शांति और संयम को अपनाना अत्यंत आवश्यक है। आदि शंकराचार्य की इस कथा से हमें प्रेरणा मिलती है कि सफलता पाने के लिए क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए।