जानिए कौन हैं मां गायत्री, उनका अवतरण, विवाह और अद्भुत महिमा

गायत्री माता का परिचय
गायत्री माता को वेदमाता, देवमाता, ज्ञानगंगा, और ब्रह्मविद्या की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।
चारों वेद—ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद—गायत्री से ही उत्पन्न माने जाते हैं।
हिंदू संस्कृति में उन्हें न केवल ब्रह्मा जी की दूसरी पत्नी माना गया है, बल्कि सरस्वती, पार्वती और लक्ष्मी का अवतार भी माना गया है।
गायत्री माता केवल एक देवी नहीं, बल्कि ब्रह्म की चेतना का साक्षात स्वरूप हैं, जिनकी उपासना से आत्मा का शुद्धिकरण और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
कैसे हुआ गायत्री माता का अवतरण?
सृष्टि के आरंभ में जब ब्रह्मा जी को सृष्टि रचना का कार्य सौंपा गया, तब उनके भीतर गायत्री मंत्र प्रकट हुआ।
इस दिव्य मंत्र की व्याख्या उन्होंने अपने चारों मुखों से की, जिससे चार वेद उत्पन्न हुए।
इसलिए गायत्री को वेदों की जननी माना जाता है।
प्रारंभ में यह मंत्र केवल देवताओं के लिए ही सीमित था, लेकिन महर्षि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या कर गायत्री माता को प्रसन्न किया और इस मंत्र को जनसामान्य के लिए सुलभ बना दिया।
गायत्री माता का विवाह कैसे हुआ?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी एक महायज्ञ में भाग लेने जा रहे थे, लेकिन उनकी पत्नी सावित्री किसी कारणवश उस समय उपस्थित नहीं थीं।
धार्मिक नियमों के अनुसार, यज्ञ में पत्नी की उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती है।
तब ब्रह्मा जी ने यज्ञ की पूर्णता के लिए उसी स्थान पर उपस्थित गायत्री देवी से विवाह कर लिया।
इस कारण गायत्री माता को ब्रह्मा जी की दूसरी पत्नी माना जाता है।
गायत्री मंत्र की महिमा
गायत्री माता का स्वरूप गायत्री मंत्र के रूप में ही अधिक व्यापक है।
यह मंत्र त्रिपदी (तीन चरणों वाला) है और इसका उच्चारण आत्मा को जाग्रत करने वाला माना गया है:
ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यम्।
भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥
गायत्री मंत्र के बारे में कहा जाता है कि—
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यह चारों वेदों का सार है।
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इसका निरंतर जप करने से साधक सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
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यह मंत्र ब्रह्मज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति का स्रोत है।
महर्षि वेदव्यास ने कहा है:
"जैसे फूलों में शहद और दूध में घी होता है, वैसे ही समस्त वेदों का सार गायत्री मंत्र है।"
गायत्री जयंती कब मनाई जाती है?
गायत्री जयंती की तिथि को लेकर भिन्न मत हैं।
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कुछ स्थानों पर इसे गंगा दशहरा के दिन माना जाता है।
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कुछ इसे गंगा दशहरा के अगले दिन यानी ज्येष्ठ मास की एकादशी को मनाते हैं।
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कई स्थानों पर यह पर्व श्रावण पूर्णिमा को भी मनाया जाता है।
वर्तमान में अधिकांश भक्त श्रावण पूर्णिमा को गायत्री जयंती के रूप में स्वीकार करते हैं।
गायत्री माता की महिमा
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अथर्ववेद में कहा गया है कि गायत्री माता आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली देवी हैं।
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महाभारत के अनुसार, जो साधक गायत्री का जप करता है, वह जैसे सांप केंचुली छोड़ कर नया जीवन पाता है, वैसे ही पापों से मुक्त हो जाता है।
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गायत्री को कामधेनु के समान कहा गया है—जो भी सच्चे मन से जप करता है, उसकी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
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जैसे गंगा जल शरीर को शुद्ध करता है, वैसे ही गायत्री मंत्र आत्मा को निर्मल करता है।
निष्कर्ष
गायत्री माता न केवल मंत्र रूप में वंदनीय हैं, बल्कि संपूर्ण ज्ञान, चेतना और ब्रह्मत्व की देवी हैं।
उनकी उपासना करने से न केवल सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि आत्मा को भी ईश्वर से मिलन का मार्ग मिलता है।
गायत्री जयंती के दिन उनका पूजन, हवन और गायत्री मंत्र का जाप करने से विशेष पुण्यफल की प्राप्ति होती है।