पूजा के बाद क्यों की जाती है आरती? जानिए धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

पूजा के बाद क्यों की जाती है आरती? जानिए धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

हिंदू धर्म में पूजा एक अत्यंत गूढ़, दिव्य और नियमबद्ध प्रक्रिया है। यह न केवल ईश्वर की आराधना है, बल्कि व्यक्ति के अंतर्मन की शुद्धि और आत्मा की जागृति का माध्यम भी है। पूजा के अंत में की जाने वाली आरती केवल एक रस्म नहीं, बल्कि संपूर्ण पूजा प्रक्रिया की पूर्णता का प्रतीक होती है।

आइए जानें पूजा और आरती से जुड़ा गहन आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पक्ष।

हिंदू संध्योपासना के पाँच अंग

हिंदू धर्म में संध्योपासना के पाँच प्रमुख अंग बताए गए हैं:

  1. संध्यावंदन

  2. प्रार्थना

  3. ध्यान

  4. कीर्तन

  5. पूजा और आरती

हर व्यक्ति अपनी श्रद्धा, प्रकृति और समयानुसार इनमें से किसी एक या एकाधिक अंगों को अपनाता है। यहां हम विशेष रूप से पूजा और आरती की प्रक्रिया और उसके महत्व पर प्रकाश डालेंगे।

पूजा क्या है?

पूजा का अर्थ है—पूरे भाव से, नियमपूर्वक देवता की उपासना करना। यह किसी मूर्ति, चित्र, या प्रतीक के माध्यम से की जाती है। पूजा के लिए देवता का आह्वान, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप-दीप और नैवेद्य जैसे उपचारों का प्रयोग किया जाता है।

प्रत्येक देवता के लिए वैदिक मंत्र और विधान निर्धारित हैं, जिन्हें ध्यानपूर्वक अर्पण करना चाहिए।
यह भी आवश्यक है कि किसी विशेष देवता की पूजा करने से पहले पंचदेवों—गणेश, शिव, विष्णु, सूर्य और शक्ति—का पूजन किया जाए।

वर्तमान में कई लोग पूजा की प्रक्रिया को मनमाने तरीके से करने लगे हैं, लेकिन शास्त्रों में वर्णित विधि ही परम मान्य और फलदायक मानी जाती है।

आरती क्या है और क्यों की जाती है?

आरती शब्द का अर्थ है—"आरात्रिक" या "नीराजन", जिसका उद्देश्य होता है पूजन के अंत में दिव्य प्रकाश से देवता की स्तुति करना। पूजा में यदि कोई त्रुटि रह जाए तो आरती के माध्यम से उसकी पूर्ति मानी जाती है।

साधारणतः पंचप्रदीप (पाँच बत्तियों वाला दीप) से आरती की जाती है, लेकिन 1, 7 या अधिक विषम संख्याओं में दीप भी उपयोग किए जा सकते हैं। आरती के समय शंख, घंटा, घड़ियाल, और अन्य वाद्ययंत्रों की ध्वनि वातावरण को पवित्र बनाती है और साधक के चित्त को एकाग्र करती है।

दीपक की लौ का महत्व

दीपक की लौ की दिशा का भी विशेष महत्व बताया गया है:

  • पूर्व दिशा : आयु में वृद्धि

  • उत्तर दिशा : धनलाभ

  • दक्षिण दिशा : हानि

  • पश्चिम दिशा : दुःख वृद्धि

  • लौ को मध्य में रखने या चारों ओर दीपक रखने से सर्वसिद्धि मिलती है।

आरती का धार्मिक महत्व

  • आरती देवता की प्रणाम-भक्ति की अंतिम अभिव्यक्ति है।

  • यह पूजा के समापन की घोषणा होती है और वातावरण में चैतन्य भर देती है।

  • यह भावनाओं को शुद्ध, सात्विक और जागृत करती है।

  • विष्णुधर्मोत्तर पुराण में कहा गया है कि जो आरती और धूप दर्शन करता है, वह अपनी कई पीढ़ियों को मोक्ष दिला सकता है।

आरती का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

भारतीय धार्मिक परंपराएँ केवल आध्यात्मिक नहीं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत लाभकारी हैं:

  1. गाय के घी से जलता दीपक, वातावरण को शुद्ध करता है।

  2. कपूर, धूप और अगरबत्ती के माध्यम से वायु में उपस्थित जीवाणुओं का नाश होता है।

  3. शंख ध्वनि का वैज्ञानिक प्रभाव बर्लिन यूनिवर्सिटी (1928) में सिद्ध किया गया—

    • यह बैक्टीरिया को मारती है।

    • 1200 फुट तक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।

    • मस्तिष्क, ह्रदय और फेफड़ों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

  4. घंटा और घड़ियाल के कंपन मानसिक तनाव दूर करते हैं और एकाग्रता को बढ़ाते हैं।

  5. आरती के दौरान ध्वनि और गंध से वातावरण न केवल शुद्ध होता है, बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।

पूजन में उपचारों की विधि

पूजन में मुख्यतः तीन प्रकार के उपचार होते हैं:

  1. पंच उपचार : गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य

  2. दश उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य

  3. षोडश उपचार (16) : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, स्तवपाठ, तर्पण, नमस्कार

पूजा के अंत में दक्षिणा अर्पित करना भी अनिवार्य माना गया है।

पूजा और आरती की सामग्री सूची

पूजन सामग्री में मुख्यतः निम्न वस्तुएं सम्मिलित होती हैं:

  • कपूर, धूप, अगरबत्ती

  • गाय का घी, शहद, दूध, दही, शक्कर

  • पुष्प, तुलसी दल, सुपारी, पान, नारियल

  • चंदन, रोली, सिंदूर, हल्दी, कुंकुम, अबीर

  • चावल, गेहूं, पंच मेवा, ऋतु फल

  • वस्त्र, मौली, आभूषण, जल कलश

  • पंचरत्न, पंचामृत, पंचपल्लव

  • दीपक, तेल, घृत, सिंहासन, आसन

  • गणेश, अंबिका व अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ

  • मंत्रोपचार, स्तोत्रपाठ, घंटा, शंख, घड़ियाल इत्यादि

विशेष सावधानी

विष्णुधर्मोत्तर पुराण में यह भी निर्देश है कि—

"घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य, तीन दुर्गा मूर्तियाँ, दो शालिग्राम या गोमती चक्र न रखें। इससे गृहस्थ को मानसिक अशांति होती है।"

निष्कर्ष

आरती केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक दिव्य विज्ञान है। यह पूजा का सार, श्रद्धा का संकलन और वातावरण को सात्विक ऊर्जा से भरने की क्रिया है। आरती करते समय व्यक्ति न केवल ईश्वर से जुड़ता है, बल्कि वह आत्म-शुद्धि, मानसिक शांति और भौतिक लाभ—all तीनों का अनुभव करता है।

इसलिए जब भी पूजा करें, आरती को केवल रस्म न समझें, बल्कि पूरे मनोयोग और श्रद्धा से करें। यही आरती का सच्चा उद्देश्य और फल है।