नागेश्वर ज्योतिर्लिंग – 12 शिव ज्योतिर्लिंगों में दशम की दिव्य गाथा

गुजरात की पावन धरती पर, समुद्र की लहरों से गूंजती हुई दिव्यता के बीच स्थित है एक ऐसा तीर्थ, जहाँ भगवान शिव 'नागों के अधिपति' रूप में स्वयं विराजमान हैं। यह है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, जिसे 12 शिव ज्योतिर्लिंगों में दशम स्थान प्राप्त है। यह स्थल शिवभक्तों के लिए भय, बंधन, और नकारात्मकता से मुक्ति का प्रतीक है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान और पर्यावरण
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के गुजरात राज्य के द्वारका और बेट द्वारका के बीच स्थित दारुकावन क्षेत्र में स्थित है। यह स्थान अरब सागर के तट पर स्थित है और यहाँ शिव की विशाल प्रतिमा दूर से ही दिखाई देती है, जो भक्तों को आकर्षित करती है।
यह भूमि भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका के निकट होने के कारण भी धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा अत्यंत प्रेरणादायक है, जिसमें भक्ति की शक्ति, शिव की कृपा और धर्म की विजय की झलक मिलती है।
- प्राचीन काल में दारुकावन नामक वन में दारुक नामक एक राक्षस अपनी पत्नी दारुका के साथ तप करता था।
- दारुका ने पार्वती जी की आराधना कर विशेष वर प्राप्त किया कि वह जिस स्थान को चाहे, उसे अपनी माया से ढक सके।
- उस शक्ति के बल पर दारुक दुष्ट प्रवृत्तियों में लग गया और धर्मात्माओं को बंदी बनाकर दारुकावन में ले जाने लगा।
- उन्हीं में एक महान शिवभक्त सुप्रिय भी था। उसने बंदीगृह में भी निरंतर "ॐ नमः शिवाय" का जप करना जारी रखा।
- उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और राक्षसों का वध कर दिया।
- फिर शिव ने उसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्वयं को स्थापित किया और वहाँ के सभी भक्तों को मुक्त किया।
यह वही स्थान है जहाँ शिव ने "नागेश्वर" के रूप में अवतार लिया — नागों के स्वामी रूप में।
नागेश्वर मंदिर की वास्तुकला और विशेषताएँ
- मंदिर के प्रवेश द्वार से ही 25 मीटर ऊँची भगवान शिव की विशाल प्रतिमा श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देती प्रतीत होती है।
- गर्भगृह में स्थित शिवलिंग स्वयंभू है और यह भूमिगत पवित्र स्थानों में से एक है।
- शिवलिंग के चारों ओर सर्पों की कलात्मक आकृतियाँ उकेरी गई हैं, जो नागेश्वर स्वरूप को दर्शाती हैं।
- मंदिर का प्रांगण शांत, पवित्र और समुद्र के समीप स्थित होने के कारण अत्यंत आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
दारुकावन और नागों का आध्यात्मिक संबंध
"दारुकावन" कोई साधारण वन नहीं था। यह प्राचीन काल में तपस्वियों, ऋषियों, और योगियों का प्रिय साधना स्थल था। नागों की उपस्थिति और रक्षा के लिए भगवान शिव ने वहाँ 'नागराज रूप' में अवतार लिया।
"नागेश्वर" नाम का तात्पर्य है — जो नागों के ईश्वर हैं। यही कारण है कि इस ज्योतिर्लिंग की पूजा विशेषकर सर्पदोष, कालसर्प योग, और भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति हेतु की जाती है।
श्रद्धा, साधना और सुरक्षा – नागेश्वर की त्रयी
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग में दर्शन मात्र से भक्तों को भय, भ्रम, रोग, और दुर्भावना से छुटकारा मिलता है। यहाँ विशेष रूप से:
- कालसर्प दोष निवारण के लिए रुद्राभिषेक किया जाता है।
- रक्षाबंधन, नाग पंचमी, महाशिवरात्रि और श्रावण सोमवार को विशेष भीड़ होती है।
- यहाँ प्रतिदिन आरती, रुद्रपाठ, और रुद्राभिषेक के आयोजन होते हैं।
नागेश्वर – जहाँ शिव स्वयं हैं नागों के रक्षक
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल एक तीर्थ है, बल्कि यह शिव के उस रूप की याद दिलाता है जो भय को हरता है, बंधनों को काटता है, और भक्त को मुक्ति प्रदान करता है।
यहाँ शिव केवल पूजे नहीं जाते,
बल्कि वह साक्षात रूप में भक्त के संकट काटते हैं।
नागों के बीच स्थित यह शिवलिंग,
हर भक्त को सुरक्षा, शक्ति और शांति का वरदान देता है।