माता पार्वती के पुत्र गणपति को पूरी दुनिया में प्रथम पूजनीय का दर्जा प्राप्त है. कोई भी शुभ कार्य के लिए सबसे पहले गणेशजी की ही आराधना की जाती है.
गणेश जी संकटमोचन, विघ्नहर्ता है. कहते है किसी भी परेशानी, तकलीफ, संकट में इनकी आराधना करने से परेशानियों का अंत हो जाता है. गणेश जी का व्रत बहुत फलदायी होता है, ये हर चतुर्थी को रखा जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार महीने में 2 चतुर्थी आती है -
01- विनायक चतुर्थी
02- संकष्टी चतुर्थी
हर महीने के शुक्ल पक्ष के चौथे दिन विनायक चतुर्थी आती है, एवं हर महीने के कृष्ण पक्ष के चौथे दिन संकष्टी चतुर्थी आती है. अगर संकष्टी चतुर्थी मंगलवार के दिन आती है, तो इसे बहुत मान्यता दी जाती है, इसे अंगार की संकष्टी चतुर्थी कहते है. सभी संकष्टी चतुर्थी में इसे विशेष महत्व दिया जाता है.
संकष्टी चतुर्थी व्रत की महिमा -
नारद पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रती को पूरे दिन का उपवास रखना चाहिए। शाम के समय संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा को सुननी चाहिए। रात के समय चन्द्रोदय होने पर गणेश जी का पूजन कर भोजन करना चाहिए। इस दिन गणेश जी का व्रत-पूजन करने से धन-धान्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है और समस्त परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत की विधि