भगवान परशुराम जी से जुड़ीं ऋषि भारद्वाज की 10 दुर्लभ बातें

भगवान परशुराम जी से जुड़ीं ऋषि भारद्वाज की 10 दुर्लभ बातें

ऋषि परशुराम का नाम जब भी लिया जाता है, उनके वंश, तप, और शौर्य के साथ-साथ उनके गुरुओं का भी विशेष उल्लेख होता है। उन्हीं में से एक महान ऋषि हैं महर्षि भारद्वाज, जिनसे जुड़ी कई बातें आम लोग नहीं जानते। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं ऋषि भारद्वाज से जुड़ीं वे 10 बातें, जो इतिहास, पुराण और वेदों में वर्णित हैं:

1. जन्म और नाम की उत्पत्ति

महर्षि भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। जन्म के समय ही माता-पिता के बीच यह विवाद हुआ कि इस संतान का पालन-पोषण कौन करेगा। दोनों ने एक-दूसरे से कहा "भरद्वाजमिमम्" यानी "तुम इसे संभालो"। यहीं से इनका नाम ‘भारद्वाज’ पड़ा। इनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी बाद में वैशाली नरेश मरुत्त (या देवता मरुत) ने ली।

2. भरत वंश के कुलगुरु

महर्षि भारद्वाज राजा भरत के कुलगुरु थे। राजा दुष्यन्त के पुत्र भरत ने उन्हें राज्य सौंप दिया और स्वयं वन में तप करने चले गए। यह प्रसंग ऋषि की प्रशासनिक और धार्मिक दोनों योग्यताओं को दर्शाता है।

3. इन्द्र से प्राप्त चार जन्मों का वरदान

तैत्तिरीय ब्राह्मण ग्रंथ के अनुसार ऋषि भारद्वाज ने इन्द्र को प्रसन्न कर सौ-सौ वर्षों के तीन जन्मों का वरदान प्राप्त किया। वे वेदों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे, लेकिन समय अपर्याप्त था। तीन जन्मों के बाद भी जब वे संतुष्ट नहीं हुए, तो इन्द्र से एक चौथा जन्म मांगा। इस पर इन्द्र ने ‘सवित्राग्रिचयन यज्ञ’ करने की सलाह दी, जिसे करने के बाद ही उनकी जिज्ञासा पूर्ण हुई।

4. श्रीराम से संबंध

रामायण के अनुसार, जब श्रीराम वनवास पर थे, तब वे दंडकारण्य जाते समय ऋषि भारद्वाज के आश्रम में रुके। ऋषि ने श्रीराम से वहीं रहने का आग्रह किया, पर श्रीराम ने यह स्वीकार नहीं किया और आगे चलकर चित्रकूट में ठहरने की व्यवस्था की गई। रावण-वध के पश्चात भी श्रीराम उनके आश्रम में गए थे।

5. परिवार और वंश

ऋषि भारद्वाज की पत्नी का नाम सुशीला था। उनके पुत्र का नाम गर्ग तथा पुत्री का नाम देववर्षिणि था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार उनकी दो पुत्रियाँ थीं – इलविदा और कात्यायनी, जिन्होंने क्रमशः विश्रवा ऋषि और याज्ञवल्क्य से विवाह किया।

एक अन्य कथा के अनुसार वे घृताची नामक अप्सरा पर मोहित हो गए थे, जिससे एक अत्यंत तेजस्वी पुत्र द्रोणाचार्य का जन्म हुआ। द्रोण का पालन-पोषण ‘द्रोणी’ नामक स्त्री ने किया, और वे पत्ते के दोने में जन्मे थे, इसीलिए उन्हें 'द्रोण' कहा गया।

6. वेदों में योगदान

ऋषि भारद्वाज ऋग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा हैं, जिसमें उनके 765 मंत्र सम्मिलित हैं। अथर्ववेद में भी उनके 23 मंत्र मिलते हैं। उन्होंने भारद्वाज-स्मृति और भारद्वाज-संहिता जैसे ग्रंथों की भी रचना की।

7. विमान-शास्त्र के रचयिता

महर्षि भारद्वाज ने ‘यन्त्र-सर्वस्व’ नामक बृहद ग्रंथ की रचना की थी। इसका कुछ अंश ‘विमान-शास्त्र’ के रूप में स्वामी ब्रह्ममुनि द्वारा प्रकाशित किया गया है। उन्होंने विमान की परिभाषा इस प्रकार दी –
"वेग-संयत् विमानो अण्डजानाम्", अर्थात पक्षियों की गति के समान जो साधन हो, वही विमान है।

इस ग्रंथ में विमानचालक के लिए 32 रहस्यों का ज्ञान अनिवार्य बताया गया है, जिनके बिना कोई भी व्यक्ति विमान नहीं चला सकता।

8. अद्भुत वैज्ञानिक दृष्टिकोण

भारद्वाज केवल धार्मिक ही नहीं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले ऋषि थे। उन्होंने वात, अग्नि और जल से चलने वाले विमानों का उल्लेख किया है। उनके ग्रंथों में वर्णित तकनीकी विवरण आज भी शोध का विषय बने हुए हैं।

9. शिक्षा और आश्रम-व्यवस्था

भारद्वाज ऋषि का आश्रम ज्ञान और तपस्या का केन्द्र था। यहाँ अनेक राजकुमार और विद्वान शिक्षा ग्रहण करने आते थे। गुरु-शिष्य परंपरा में उनका स्थान अत्यंत आदरणीय है।

10. द्रोणाचार्य के गुरु और पिता

द्रोणाचार्य जिन्हें महाभारत में कौरवों और पांडवों के शस्त्र-गुरु के रूप में जाना जाता है, उन्हीं ऋषि भारद्वाज के पुत्र थे। यह संबंध बताता है कि भारद्वाज की परंपरा न केवल वैदिक ज्ञान बल्कि युद्ध-कला में भी निपुण थी।

निष्कर्ष

ऋषि भारद्वाज केवल एक वेदज्ञ ऋषि नहीं थे, वे विज्ञान, शिक्षा, राजनीति और अध्यात्म का संगम थे। परशुराम जैसे महान व्यक्तित्व का उनसे संबंध होना यह दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध कितना गहरा और प्रभावशाली रहा है।