भागवत कथा: देवगुरु बृहस्पति के पुत्र कच और असुराचार्य शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी की कथा
मित्रों, बीते दो दिनों से हम राजा ययाति और देवयानी की कथा सुन रहे हैं। उस प्रसंग में बार-बार कच और देवयानी के प्रेम तथा दोनों द्वारा एक-दूसरे को दिए गए शाप का उल्लेख आता है।
आज हम उसी प्रसंग की पृष्ठभूमि जानेंगे — वह कथा जिसने आगे चलकर ययाति और देवयानी के जीवन को गहराई से प्रभावित किया।
कच का शुक्राचार्य से शिक्षा लेने जाना
देवता और असुर निरंतर युद्ध में रत रहते थे। यद्यपि देवता ज्ञान और बुद्धि में श्रेष्ठ थे, किंतु असुरों के पास एक वरदान था — मृत संजीवनी विद्या।
असुराचार्य शुक्राचार्य के पास यह अद्भुत ज्ञान था, जिसके बल पर वे मरे हुए असुरों को पुनः जीवित कर देते थे। यही कारण था कि असुर बार-बार युद्ध में पराजित होने पर भी पुनः खड़े हो जाते थे।
देवताओं के गुरु बृहस्पति के लिए यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक थी। उन्होंने निश्चय किया कि उनके पुत्र कच को असुराचार्य के पास भेजा जाए ताकि वह भक्ति, सेवा और निष्ठा के बल पर मृत संजीवनी विद्या सीख सके।
कच का आगमन और देवयानी का आकर्षण
कच अत्यंत तेजस्वी, सुंदर और ब्रह्मचारी युवक था। जब वह असुराचार्य के आश्रम में पहुँचा, तो शुक्राचार्य ने पहले तो उसे शत्रुपुत्र जानकर अस्वीकार कर दिया, परंतु कच की सेवा-भावना और विनम्रता देखकर उन्होंने उसे अपना शिष्य स्वीकार कर लिया।
शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी रूपवती, बुद्धिमती और चंचल स्वभाव की थी। कच की सौम्यता और आकर्षक व्यक्तित्व देखकर वह उस पर मोहित हो गई। धीरे-धीरे उसके हृदय में कच के प्रति प्रेम अंकुरित हो उठा। कच, यद्यपि उसके स्नेह को समझता था, परंतु वह ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन करते हुए अपने लक्ष्य में स्थिर रहा।
असुरों की शंका और कच की बार-बार हत्या
जब असुरों को ज्ञात हुआ कि देवताओं का पुत्र कच उनके गुरु से शिक्षा प्राप्त कर रहा है, तो उन्हें भय हुआ कि कहीं वह यह विद्या सीखकर देवताओं को न सिखा दे। उन्होंने कच की हत्या का षड्यंत्र रचा।
एक दिन उन्होंने उसे मार डाला। जब देवयानी को यह पता चला, तो वह विलाप करने लगी और अपने पिता से कच को मृत संजीवनी विद्या से पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। शुक्राचार्य ने पुत्री के आग्रह पर ऐसा किया।
असुरों ने कई बार कच की हत्या की, पर हर बार देवयानी के अनुरोध पर शुक्राचार्य ने उसे जीवित कर दिया। अंततः असुरों ने एक भयंकर उपाय किया — उन्होंने कच को मारकर उसका भस्म बनाकर शुक्राचार्य को ही भोजन के रूप में खिला दिया।
कच का शुक्राचार्य के शरीर से पुनर्जन्म
जब देवयानी को यह ज्ञात हुआ, तो उसने पिता से पुनः प्रार्थना की।
शुक्राचार्य संकट में पड़ गए — यदि वे कच को जीवित करते हैं तो वह उनके शरीर को फाड़कर बाहर आएगा, और यदि न करें तो शिष्य का अंत होगा।
अंततः उन्होंने पुत्री के प्रेम और शिष्य के त्याग को देखकर कच को मृत संजीवनी विद्या सिखा दी। कच ने उसी विद्या का प्रयोग कर स्वयं को जीवित किया और शुक्राचार्य के शरीर को फाड़कर बाहर निकला। तत्पश्चात उसने अपने गुरु को भी उसी विद्या से पुनः जीवित किया।
देवयानी का प्रेम और शाप-प्रसंग
जब कच ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली, तो उसने गुरु से विदा लेनी चाही। देवयानी उससे बिछोह की कल्पना से व्याकुल हो उठी। उसने आँसुओं से भरे नेत्रों से कच के प्रति अपना प्रेम प्रकट किया।
कच ने शांत स्वर में कहा — “देवयानी, आप मेरे गुरु की पुत्री हैं, अतः मेरे लिए मातृ-स्वरूपा हैं। मैं ब्रह्मचारी हूँ, विवाह मेरा धर्म नहीं।”
देवयानी ने इसे अस्वीकार कर दिया और क्रोधित होकर कहा — “कच! मैंने तुम्हारे प्राणों की रक्षा के लिए बार-बार पिता से विनती की, तुम्हारा जीवन मुझसे बंधा है। अब तुम मेरे हो।”
जब कच ने पुनः धर्म और मर्यादा का स्मरण कराया, तो आहत देवयानी ने शाप दिया —
“तुम्हारे पास यह अमरत्व-दायक विद्या तो रहेगी, पर तुम इसका प्रयोग स्वयं के लिए नहीं कर सकोगे।”
कच ने शांति खो दी और कहा —
“देवयानी! प्रेम में अंधी होकर तुमने अनुचित आचरण किया है। अतः मैं तुम्हें यह शाप देता हूँ कि कोई ब्राह्मण तुम्हें पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करेगा। तुम्हारा विवाह क्षत्रिय कुल में होगा और तुम्हारा दांपत्य जीवन विषादमय रहेगा।”
कथा का परिणाम
कच अमरावती लौट गया और उसने मृत संजीवनी विद्या देवताओं को सिखा दी। इस प्रकार उसका उद्देश्य पूर्ण हुआ, यद्यपि वह स्वयं इस विद्या का उपयोग अपने लिए कभी न कर सका।
कच के शाप के अनुसार, देवयानी का विवाह एक ब्राह्मण से नहीं बल्कि क्षत्रिय राजा ययाति से हुआ, और उसका वैवाहिक जीवन सचमुच दुःखों से भरा रहा।