भागवत कथाः शेषजी के स्थानांतरण के बाद देवकी के गर्भ में श्रीहरि का आगमन

भागवत कथाः शेषजी के स्थानांतरण के बाद देवकी के गर्भ में श्रीहरि का आगमन

जब अधर्म और अत्याचार की सीमा पृथ्वी पर बढ़ जाती है, तब स्वयं भगवान को धर्म की पुनः स्थापना के लिए अवतरित होना पड़ता है। द्वापर युग में भी ऐसा ही हुआ।

पृथ्वी का विलाप और श्रीहरि का वचन

दैत्यों ने राजाओं का रूप धरकर पृथ्वी पर अत्याचार का तांडव आरंभ कर दिया। इससे आहत होकर पृथ्वी ने धरणी गाय का रूप धारण किया और ब्रह्माजी के पास पहुँची। पृथ्वी रोती रही, विनती करती रही:

“मैं अब यह बोझ सहन नहीं कर पा रही। अधर्म और हिंसा मेरे अस्तित्व को छिन्न-भिन्न कर रहे हैं।”

ब्रह्माजी व्यथित हुए और वे सभी देवताओं सहित क्षीर सागर गए। वहाँ पुरुष सूक्त से श्रीहरि की स्तुति की। तभी आकाशवाणी हुई—

“मैं स्वयं पृथ्वी पर अवतरित होऊँगा। सभी देवता अपने अंशों को पृथ्वी पर भेजें और मेरी लीला में सहभागी बनें।”

यदुवंश की उत्पत्ति और वसुदेव-देवकी का विवाह

भोज वंश में राजा उग्रसेन हुए। उनके भाई देवक की कन्या देवकी थीं। देवकी का विवाह शूरसेन के पुत्र वसुदेव से संपन्न हुआ। विवाह के समय देवकी के रथ की बागडोर स्वयं उसका भाई कंस संभाल रहा था।

रथ चलाते समय ही हुई आकाशवाणी

“हे कंस! जिस बहन से तू इतना प्रेम करता है, उसकी आठवीं संतान तेरी मृत्यु का कारण बनेगी।”

कंस ने क्रुद्ध होकर तलवार निकाल ली और देवकी को मारने को उद्धत हो गया।

वसुदेवजी ने अत्यंत शांतिपूर्वक समझाया—

“तुम्हारा भय संतान से है, न कि मेरी पत्नी से। मैं तुम्हें हर संतान सौंप दूँगा।”

कंस ने वसुदेव के सत्य वचन पर विश्वास किया और देवकी को जीवित छोड़ दिया।

कंस की क्रूरता और नारद का रहस्योद्घाटन

देवकी की प्रथम संतान हुई, वसुदेव ने उसे कंस को सौंप दिया। कंस ने पहले तो उस शिशु को लौटा दिया, परंतु तभी नारदजी ने उसे सावधान किया—

“कौन सी संतान आठवीं है, यह तो गणना पर निर्भर करता है। देवताओं की संतानें गोकुल में जन्म ले रही हैं। तुम भूल मत करो।”

कंस का भूतपूर्व जन्म उसे स्मरण हो आया। वह कालनेमि नामक असुर था जिसे श्रीविष्णु ने मारा था।

कंस ने तत्क्षण वसुदेव-देवकी को कारागार में डाल दिया और एक-एक कर उनकी छह संतानों की हत्या कर दी।

शेषजी का गर्भागमन और संकर्षण रूप

सातवें गर्भ में आए स्वयं आदिशेष — जो पहले श्रीराम के लक्ष्मण थे, अब श्रीकृष्ण के अग्रज बलराम बनने आए।

श्रीहरि ने अपनी योगमाया को आदेश दिया—

“इस भ्रूण को देवकी के गर्भ से निकालकर रोहिणी के गर्भ में स्थापित करो, जो नंदबाबा के गोकुल में छिपी हैं।”

योगमाया ने ऐसा ही किया। इसी कारण उनका नाम पड़ा — संकर्षण (जो खींचकर लाया गया हो)।

कंस ने समझा कि देवकी का गर्भपात हो गया।

अब श्रीहरि स्वयं गर्भ में प्रवेश करते हैं

अब वह दिव्य क्षण आया। श्रीहरि ने अपनी पूर्ण शक्तियों, ज्ञान, ऐश्वर्य और करुणा के साथ देवकी के गर्भ में प्रवेश किया।

उनके गर्भ में आते ही कारागार के वातावरण में तेज और दिव्यता फैलने लगी। देवकी का मुखमंडल सूर्य की भांति चमकने लगा। द्वारपालों ने यह देखकर कंस को सूचना दी।

कंस का हृदय भय से कांप उठा। उसे स्वप्न में, जागरण में, काल रूप में श्रीकृष्ण दिखाई देने लगे। उसके सारे प्रयत्न व्यर्थ प्रतीत होने लगे।

ब्रह्मा, महादेव और देवताओं की स्तुति

जब भगवान गर्भ में स्थित हुए, तो समस्त देवगण — ब्रह्मा, शंकर, इंद्र, वरुण, यम, अग्नि आदि — कारागार में उपस्थित हुए।

उन्होंने श्रीहरि की स्तुति की:

“हे करुणामय! हे विश्वपालक! हम आपके आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। आपका अवतरण समस्त सृष्टि के लिए कल्याणकारी हो।”

योगमाया को मिला वरदान

भगवान ने योगमाया को आदेश दिया—

“तुम नंदबाबा की पत्नी यशोदा के गर्भ में जन्म लो। इस कार्य में सहयोग करने के कारण तुम संसार में अंबिका, नारायणी, दुर्गा, चामुंडा, वैष्णवी, शारदा आदि नामों से पूजी जाओगी।”

योगमाया प्रसन्न होकर यह कार्य संपन्न करने चल पड़ीं।

निष्कर्ष: श्रीकृष्ण का अवतरण अब निकट है

अब समय आ चुका है। अधर्म की जड़ें कांप रही हैं। कंस भयाक्रांत है, देवता प्रसन्न हैं, योगमाया तैयार हैं — और श्रीहरि, देवकी के गर्भ में विराजमान हैं।

यह केवल एक गर्भ में स्थित बालक नहीं, समस्त चराचर जगत के उद्धारक हैं।