छठा भाव - ऋण भाव क्या है.

छठा भाव - ऋण भाव क्या है.

वैदिक ज्योतिष में कुण्डली का छठा भाव रोग भाव, त्रिक भाव, दु:स्थान, उपचय, अपोक्लिम व त्रिषाडय भाव के नाम से जाना जाता है. इस भाव का निर्बल होना अनुकुल माना जाता है. छठा भाव जिसे ज्ञाति भाव भी कहते है. यह भाव व्यक्ति के शत्रु संबन्ध दर्शाता है. इस भाव से ऋण, रोग, नौकरी, पेशा, दुर्दशा, सन्ताप, चोट, चिन्ताएं, असफलताएं, बिमारियां, दुर्घटनाएं, अवरोध,षडयन्त्र, मानसिक पीडा, घाव, कारावास, क्रूर कार्य, न्यूनता, और चाह्त का भाव, मानसिक स्थिरता, इमारती लकडी, पत्थर, औजार, अस्पताल, जेल, सौतेली मां, दण्ड, क्रूर आदेशों का पालन, प्रतियोगिताओं में अनुकल परिणाम, काम, क्रोध, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, निवेश में हानि, साझेदारी. क्रय-विक्रय, भौतिक समृ्द्धि और अस्वस्थता.

छठा भाव का कारक ग्रह कौन सा है :
छठे भाव का कारक मंगल ग्रह है. मंगल से इस भाव से शत्रु, शत्रुता, मुकदमेबाजी, अवरोध, चोट आदि देखे जाते है. शनि इस भाव से रोग, शोक, ऋण आदि प्रकट करता है. व बुध षष्ट भाव में भाई-बन्धु, मामा और चाचा का प्रतिनिधित्व करता है.

छठे भाव से स्थूल रुप में किस विषय का विश्लेषण किया जाता है. :
छठा भाव शत्रु भाव के रुप में विशेष रुप से जाना जाता है. इस भाव से स्थूल रुप में व्यक्ति के शत्रुओं का विचार किया जाता है.

छठे भाव से सूक्ष्म रुप में क्या देखा जाता है. :
छठे भाव से व्यक्ति के नुकसान देखे जाते है.

छठा भाव कौन से संबन्धों को प्रकट करता है. :
छठे भाव से मामा, नौकर, पालतु जानवार, पिता के सगे-सम्बन्धी आदि का विचार किया जाता है.

छठा भावेश अन्य भाव स्वामियों के साथ कौन से परिवर्तन योग बनाता है :
षष्ठेश और सप्तमेश का परिवर्तन योग व्यक्ति को जीवन में उतार-चढाव देता है. उसके वैवाहिक जीवन के लिए यह योग शत्रु समान फल देता है. जिस प्रकार शत्रु व्यक्ति की जीवन में बाधाएं उत्पन्न करते रहते है, ठिक उसी प्रकार यह योग होने पर व्यक्ति का जीवन साथी वैवाहिक जीवन की खुशियों में परेशानियों का कारण बनता है.

षष्ठेश और अष्टमेश का परिवर्तन योग एक प्रकार का विपरीत राजयोग है. ऎसा व्यक्ति भौतिक प्राप्तियां प्राप्त करता है.
लेकिन स्वास्थय के लिए अनुकुल नहीं होता है.

षष्ठेश और नवमेश में परिवर्तन योग बन रहा हों, तो व्यक्ति धार्मिक आस्थावान कम होता है. उसके पिता का स्वास्थय भी पीडित होता है. यात्राओं के दौरान सुख में कमी होती है. व्यक्ति को विदेशी व्यापार में हानियां होती है.

षष्ठेश और दशमेश में परिवर्तन योग होने पर व्यक्ति के व्यापार और व्यवसाय के लिए अच्छा नहीं होता है. इस योग से युक्त व्यक्ति लाभ कमाकार ऊंचा उठता है. व्यक्ति की पैतृ्क संपति में कमी होती है.

षष्ठेस ओर एकादशेश में जब परिवर्तन योग बनता है, तब व्यक्ति केवल नौकरी से आय प्राप्त करता है. उसके अपने मित्रों, भाई बहनों के साथ संबन्धों में तनाव रहता है.

षष्ठेश और द्वादशेश में परिवर्तन योग एक विपरीत राजयोग है. इस योग में व्यक्ति अपने व्ययों के लिए बडे ऋण लेता है. और जीवन भर विध्न, समृ्द्धि, अस्वस्थ रहता है. विदेश यात्राएं करता है.

सूर्य पीडित होकर छठे भाव में हों, तो कौन सा रोग देता है.

सूर्य पीडित हो, तथा रोग भाव में स्थित हों, तो व्यक्ति को फोडे, सिरदर्द, रक्तचाप, तपेदिक आदि दे सकता है. ये रोग व्यक्ति को सूर्य की दशा अवधि या फिर छठे भाव के स्वामी की दशा अवधि में प्राप्त होते है.

चन्द्रमा का निर्बल होकर रोग भाव में स्थित होना, व्यक्ति को अपच या पेट की गडबड, शरीर में द्रव्यों की मात्रा स्थिर होने संबन्धी रोग दे सकता है.

मंगल पीडित अवस्था में रोग भाव में हो, तो व्यक्ति को मासँ पेशियों प्रणाली के कारण होने वाला ताप और जलन, चर्म रोग, जहरबाद, अण्डवृ्द्धि, हार्निया, शल्यचिकित्सा आदि देता है.

बुध व्यक्ति को चिडचिडापन और चिन्ताओं के कारण होने वाले नाडियों और मानसिक शिकायतें, खांसी-जुकाम अस्थमा, जोडों में दर्द, सिरदर्द, हाथ-पांवों में दर्द दे सकता है.

गुरु रोग भाव में पीडित अवस्था में स्थित हों, तो व्यक्ति को जिगर संबन्धी रोग होते है. पावों और पंजों में दर्द के साथ पेट की शिकायत होती है.

शुक्र के कमजोर होने पर व्यक्ति को गुरदे कि समस्याएं, जन्म देने की समस्याएं, बहुमूत्र आदि समस्याएं देता है.

शनि के कमजोर होने पर यह ग्रह घबराहट, गठिया, सम्बन्धी, शिकायतें, मिरगी.

राहू के कारण व्यक्ति को मिरगी, शीतला, और कोढ आदि हो सकते है.

केतु इस स्थिति में व्यक्ति को त्वचा पर पपडी, खुजली, चेचक, दाद आदि देता है.

उपरोक्त सभी प्रकार के रोग व्यक्ति को षष्टेश की दशा- अन्तर्दशा में प्राप्त होते है.