भागवत कथा: गरुड़ के शाप से यमुना में छुपे कालिया नाग को श्रीकृष्ण का अभयदान
जब-जब धर्म की रक्षा हेतु भगवान अवतरित होते हैं, तब केवल राक्षसों का नाश नहीं करते, अपितु प्रकृति और जीव-जगत को भी संतुलित करते हैं। श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं इस तथ्य की जीवंत झलक हैं। उन्हीं लीलाओं में एक है — कालिय नाग का दमन।
कालिया नाग का गर्व और गरुड़ से वैर
कालिया नाग, कद्रू और महर्षि कश्यप का पुत्र था। वह एक विषधर, पन्नग जाति का अत्यंत घमंडी नाग था। उसका पहले निवास स्थान था — रमण द्वीप। परंतु वहाँ उसकी शत्रुता हो गई पक्षीराज गरुड़ से।
गरुड़, अमृत के वाहक, तेजस्वी और महान योद्धा थे। नागों के साथ उनका एक समझौता था कि प्रत्येक अमावस्या को एक सर्प को बलिदान स्वरूप गरुड़ को दिया जाएगा। यह नियम नागों ने स्वेच्छा से बनाया था, ताकि गरुड़ के कोप से बचे रहें।
लेकिन कालिया अपने विष और बल पर इतना गर्वित था कि उसने इस नियम को ठुकरा दिया। यहाँ तक कि गरुड़ के लिए रखे गए सर्प को स्वयं खा गया। यह अपमान नाग वंश सह न सका। उन्होंने गरुड़ को इसकी सूचना दी।
गरुड़ क्रोधित हुए। उन्होंने कालिया पर आक्रमण किया। कालिया ने अपने सैंकड़ों फन फैलाए, विष उगला और गरुड़ से युद्ध किया। उसने गरुड़ को दांतों से पकड़ लिया। परंतु गरुड़ ने बलपूर्वक झटका दिया और कालिया यमुना में जा गिरा।
कालिया का यमुना में प्रवेश और कालियदह की उत्पत्ति
कालिया जानता था कि यमुना का एक विशेष कुंड ऐसा है जहाँ गरुड़ प्रवेश नहीं कर सकते। वह वहीं जाकर छिप गया। वह स्थान था कालियदह कुंड — जहाँ गरुड़ ऋषि सौभरि के शाप के कारण नहीं आते थे।
गरुड़ को मिला ऋषि सौभरि का शाप
एक बार गरुड़ ने एक मछली को खा लिया, जो महर्षि सौभरि के संरक्षण में थी। ऋषि उस समय जल में तप कर रहे थे। मछली की याचना के बाद भी गरुड़ ने उसे खा लिया। क्रोधित होकर सौभरि मुनि ने गरुड़ को शाप दिया:
“यदि तुम इस यमुना-कुंड में प्रवेश करोगे, तो उसी क्षण मृत्यु को प्राप्त होगे।”
तब से गरुड़ उस स्थान से दूर रहने लगे, और कालिया वहीं आकर बस गया।
विष से दूषित हुआ यमुना का जल
कालिया के विष से यमुना का वह कुंड अत्यंत प्रदूषित हो गया। वहाँ की जलधारा काली हो गई। मछलियाँ मरने लगीं। पशु-पक्षी, मनुष्य उस ओर जाना छोड़ चुके थे। वहाँ के चारों ओर जीवन का लोप हो गया।
लेकिन एकमात्र कदंब का वृक्ष वहाँ हरा-भरा रहा।
कदंब वृक्ष का संरक्षण
इस वृक्ष को गरुड़ ने एक बार विश्राम हेतु उपयोग किया था, जब वे अमृत कलश लेकर लौट रहे थे। अमृत की कुछ बूंदें उस वृक्ष पर गिरी थीं, जिससे यह विष के प्रभाव से अछूता रहा।
श्रीकृष्ण का कालिया कुंड में प्रवेश
गोप बालकों के साथ खेलते-खेलते जब श्रीकृष्ण ने देखा कि यमुना का यह भाग विषाक्त और जीवनहीन हो चुका है, तो उन्होंने संसार को इससे मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया।
वे उस कदंब वृक्ष पर चढ़े और कुंड में कूद पड़े।
जल में हलचल मच गई। कालिया को लगा कोई शत्रु आ गया है। उसने तुरंत श्रीकृष्ण को अपने फनों में जकड़ लिया। जैसे ही यह बात गोपों और ग्वाल-बालों को पता चली, समस्त गोकुल रोने लगा। यशोदा माता और नंद बाबा शोक से मूर्चित हो गए।
नाग-नर्तन और कालिया का पराभव
परंतु तभी चमत्कार हुआ — श्रीकृष्ण ने अपनी लीला प्रकट की। वे कालिया के फनों पर चढ़ गए और नृत्य करने लगे। हर बार जब वे एक फन पर चढ़ते, वह नीचे झुक जाता। कालिया थक गया, हार गया, विषहीन हो गया।
कालिया की पत्नियाँ, जिन्हें नागपत्नी कहते हैं, शरणागत होकर श्रीकृष्ण से विनती करने लगीं:
“प्रभु! हमारे पति को क्षमा करें। वह अहंकारी था, परंतु अब शरणागत है।"
श्रीकृष्ण का अभयदान और कालिया का गमन
श्रीकृष्ण ने कालिया को अभयदान दिया। कहा:
“अब तुम रमण द्वीप लौट जाओ। मेरे चरणों के चिह्न तुम्हारे मस्तक पर रहेंगे। इन्हें देखकर गरुड़ तुम्हें कोई क्षति नहीं पहुँचाएंगे।”
कालिया ने प्रभु का वंदन किया। उसकी पत्नियों ने प्रभु का दिव्य गंध, आभूषण और मणियों से शृंगार किया, आरती उतारी, स्तुति की और फिर कालिया परिवार सहित यमुना से विदा हो गया।
निष्कर्ष:
यह कथा न केवल श्रीकृष्ण की पराक्रम लीला है, बल्कि यह दर्शाती है कि…
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जो शरणागत होता है, प्रभु उसे क्षमा करते हैं
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अहंकार चाहे जितना भी बलवान हो, धर्म के आगे टिक नहीं सकता
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विष भी अमृतमय हो जाता है, जब वह प्रभु चरणों में समर्पित होता है