वरुण मुद्रा
यह शरीर में जल तत्व को नियंत्रित करने के लिये होती है। इस मुद्रा को कर के आपका चेहरा सुंदर दिख सकता है। इससे चेहरा चमकदार और चेहरे में नमी बरकरार रहेगी।
- पदमासन या सुखासन में बैठ जाएँ।
- रीढ़ की हड्डी सीधी रहे एवं दोनों हाथ घुटनों पर रखें।
- हाथ की सबसे छोटी उंगली (कनिष्का) को जल तत्व का प्रतीक माना जाता है।
- जल तत्व और अग्नि तत्व (अंगूठें) को एकसाथ मिलाने से बदलाव होता है।
- छोटी उंगली के आगे के भाग और अंगूठें के आगे के भाग को मिलाने से 'वरुण मुद्रा' बनती है।
- बाकी की तीनों अँगुलियों को सीधा करके रखें।
- वरुण मुद्रा शरीर के जल तत्व सन्तुलित कर जल की कमी से होने वाले समस्त रोगों को नष्ट करती है।
- वरुण मुद्रा स्नायुओं के दर्द, आंतों की सूजन में लाभकारी है।
- इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर से अत्यधिक पसीना आना समाप्त हो जाता है।
- वरुण मुद्रा के नियमित अभ्यास से रक्त शुद्ध होता है एवं त्वचा रोग व शरीर का रूखापन नष्ट होता है।
- यह मुद्रा शरीर के यौवन को बनाये रखती है। शरीर को लचीला बनाने में भी यह लाभप्रद है।
- वरुण मुद्रा करने से अत्यधिक प्यास शांत होती है।
- कफ, सर्दी जुकाम वाले व्यक्तियों को इस मुद्रा का अभ्यास अधिक समय तक नहीं करना चाहिए।
- आप इस मुद्रा को गर्मी व अन्य मौसम में प्रातः सायं 24-24 मिनट तक कर सकते हैं।