जानिए सूर्य देव के जन्म की कथा

सूर्य देव की उत्पत्ति का वर्णन वेद, पुराण और भागवत आदि ग्रंथों में मिलता है।
1. ब्रह्मा जी से उत्पत्ति
सृष्टि के प्रारंभ में जब ब्रह्मा जी ने संसार की रचना की, तब उन्होंने तेजस्वी प्रकाश का एक अंश प्रकट किया।
उस तेज से आदित्यगण (बारह सूर्य स्वरूप) उत्पन्न हुए। उनमें से प्रमुख हैं – विवस्वान (सूर्य देव)।
2. कश्यप ऋषि और अदिति से जन्म
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दक्ष प्रजापति की कन्या अदिति का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ।
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अदिति से बारह आदित्य (सूर्य के बारह रूप) उत्पन्न हुए।
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उनमें से एक हैं विवस्वान (सूर्य देव)।
इन्हें ही हम प्रत्यक्ष सूर्य मानते हैं, जो जगत को प्रकाश और जीवन देते हैं।
3. सूर्य देव का विवाह और संतान
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सूर्य देव का विवाह विश्वकर्मा की कन्या संज्ञा (संवरणी/संग्या) से हुआ।
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संज्ञा सूर्य के तेज को सहन न कर सकीं, इसलिए उन्होंने अपनी छाया (छाया देवी/छाया माता) को सूर्य के पास छोड़ दिया और स्वयं तपस्या के लिए चली गईं।
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संज्ञा से सूर्य को वैवस्वत मनु और यमराज हुए।
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छाया से शनि देव, ताप्ती नदी आदि की उत्पत्ति हुई।
4. प्रतीकात्मक अर्थ
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सूर्य देव का जन्म तेज, प्रकाश और ऊर्जा से हुआ माना जाता है।
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वे आत्मा और जीवन शक्ति के प्रतीक हैं।
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वेदों में सूर्य को साक्षात नारायण कहा गया है –
“सूर्यो नारायणो देवः”।
महत्व
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सूर्य देव को साक्षात ईश्वर का प्रत्यक्ष रूप माना जाता है, क्योंकि वे सबको समान रूप से प्रकाश और जीवन देते हैं।
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उनके बिना कोई जीवन संभव नहीं।
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इसलिए वेद में कहा गया है –
“आदित्यादि देवता नमस्ते”।
सरल भाषा में कहें तो –
सूर्य देव कश्यप ऋषि और अदिति के पुत्र हैं, जो ब्रह्मा जी के तेज से उत्पन्न बारह आदित्यों में से एक हैं।