पूजा-आरती का वैज्ञानिक महत्व : एक आध्यात्मिक विज्ञान

पूजा-आरती का वैज्ञानिक महत्व : एक आध्यात्मिक विज्ञान

‘गन्धाक्षतम्, पुष्पाणि, धूपम्, दीपम्, नैवेद्यम् समर्पयामि।’
यह श्लोक हिन्दू संध्योपासना की मूल भावना को प्रकट करता है। हिन्दू धर्म में प्रार्थना, ध्यान, कीर्तन और पूजा-आरती — ये संध्योपासना के चार मुख्य अंग माने गए हैं। इनमें भी पूजा और आरती का विशेष स्थान है, क्योंकि यही वह प्रक्रिया है जिसमें भक्त का संपर्क ईश्वर से सीधे जुड़ता है।

परंपराएं केवल आस्था का विषय नहीं होतीं — इनके पीछे गहन वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक तर्क भी छिपे होते हैं। आइए समझते हैं कि पूजा और आरती का वैज्ञानिक महत्व क्या है।

1. पूजा का उद्देश्य और प्रक्रिया

पूजा का अर्थ है — श्रद्धा और विश्वास के साथ अपने आराध्य को भावनाओं, सामग्री और मंत्रों के माध्यम से अर्पण करना।
हर देवी-देवता के पूजन के लिए नियत विधि-विधान और वैदिक मंत्र निर्धारित हैं। पूजा में पहले पंचदेवसूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु — का पूजन आवश्यक माना गया है। इसके बाद ही किसी अन्य देवता की आराधना पूर्ण मानी जाती है।

पूजा में प्रयुक्त गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, जल आदि के पीछे केवल धार्मिक मान्यता ही नहीं, गहरा वैज्ञानिक कारण भी है।

2. आरती का अर्थ और भूमिका

आरती का शाब्दिक अर्थ है — अंधकार को हटाकर प्रकाश फैलाना। इसे आरात्रिक या नीराजन भी कहा गया है।
पूजा में यदि कोई त्रुटि या अपूर्णता रह जाती है, तो आरती उसे पूर्ण कर देती है। सामान्यतः पाँच बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है, जिसे पंचप्रदीप कहते हैं।

विशेष नियम:

  • घी का दीपक बाएँ और तेल का दीपक दाएँ जलाना चाहिए।

  • दीपक की लौ पूर्व दिशा की ओर हो तो आयु वृद्धि, उत्तर दिशा में हो तो धन लाभ होता है।

  • घी की सफेद रुई और तेल की लाल बत्ती का प्रयोग उचित माना गया है।

3. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आरती और पूजा के लाभ

(i) वायु और वातावरण की शुद्धता

  • आरती में उपयोग होने वाला घी, कपूर, धूप आदि वायु में जलने पर ओजोन तत्व उत्पन्न करते हैं, जो रक्त को शुद्ध करने में सहायक होता है।

  • इनसे उत्पन्न धुआँ वातावरण में मौजूद रोगाणुओं और विषाक्त कणों को नष्ट करता है।

  • कपूर और गंधक का धुआँ घर के कोनों और संकुचित स्थानों की प्राकृतिक सफाई करता है।

(ii) ध्वनि विज्ञान

  • शंख की ध्वनि में ऐसी शक्ति है जो संक्रामक रोगों के कीटाणुओं को भी समाप्त कर सकती है।

    • 1928 में बर्लिन यूनिवर्सिटी के शोध के अनुसार, शंख की ध्वनि 1200 फीट दूर तक के बैक्टीरिया को मार सकती है।

    • शंख बजाने से मस्तिष्क की कोशिकाएं सक्रिय होती हैं और श्रवणशक्ति में सुधार होता है।

  • घंटी और घड़ियाल की ध्वनि से उत्पन्न ध्वनि तरंगें मानसिक तनाव को कम कर एकाग्रता बढ़ाती हैं।

(iii) मानसिक और भावनात्मक शुद्धता

  • पूजा और आरती से मन शांत, एकाग्र और सकारात्मक बनता है।

  • आरती के समय मंत्र, ध्वनि, प्रकाश और सुगंध का सामूहिक प्रभाव मस्तिष्क की तरंगों को संतुलित करता है, जिससे मनुष्य अवसाद, भय और क्रोध से मुक्त हो पाता है।

4. पूजन सामग्री और उपचारों का वैज्ञानिक आधार

पूजा में प्रयुक्त गंध, पुष्प, नैवेद्य, धूप, दीपक आदि के प्रयोग से हमारे इंद्रियों को संतुलित अनुभूति मिलती है —

  • घृत, दूध, दही, शहद और गंगाजल जैसे तत्वों से बनी पंचामृत शरीर को शुद्ध करता है।

  • तुलसी, पीपल, दूर्वा, कमल, कुशा आदि वनस्पतियां औषधीय गुणों से युक्त होती हैं।

  • पंच रत्न, चंदन, केसर, कुंकुम आदि में रोग नाशक और ताजगी बढ़ाने वाले गुण होते हैं।

5. पूजन में संयम और नियम का महत्व

शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि घर में कुछ विशेष मूर्तियों की अधिकता अशांति का कारण बनती है
जैसे — दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो सूर्य या शंख आदि। इससे ऊर्जा का असंतुलन होता है और मानसिक व भावनात्मक तनाव बढ़ सकता है।

निष्कर्ष

पूजा और आरती न केवल धार्मिक कृत्य हैं, बल्कि वे मानव जीवन को संतुलन, शांति और ऊर्जा प्रदान करने वाले वैज्ञानिक उपाय हैं।
इनका उद्देश्य केवल ईश्वर को प्रसन्न करना नहीं, बल्कि मन, शरीर और वातावरण को पवित्र और संतुलित बनाना भी है।

इसलिए जब अगली बार आप दीपक जलाएं, शंख बजाएं या आरती करें — तो जानें कि आप सिर्फ परंपरा नहीं निभा रहे, बल्कि एक गहरे वैज्ञानिक कार्य को अंजाम दे रहे हैं