जानिए क्यों “अन्नदान” को कहा गया है सबसे श्रेष्ठ दान
क्या आपने कभी सोचा है कि धार्मिक आयोजनों के अंत में भंडारा या लंगर क्यों कराया जाता है? क्यों कहा गया है कि अन्न का दान सभी दानों में सर्वोत्तम है?
इस प्रश्न का उत्तर न केवल हमारी परंपराओं में छिपा है, बल्कि हमारे शास्त्रों, पुराणों और धार्मिक अनुभवों में भी इसका गहरा उल्लेख मिलता है।
हर धर्म में अन्नदान की परंपरा
भले ही धर्म कोई भी हो, एक बात समान है — भोजन करवाना एक पुण्य कार्य माना गया है।
आपने अक्सर देखा होगा कि जब कोई व्यक्ति धार्मिक कार्य जैसे पूजा-पाठ, कथा, यज्ञ या हवन करता है, तो उसके समापन पर वह भंडारा या लंगर जरूर करवाता है। कई धार्मिक स्थलों पर यह सेवा निरंतर चलती रहती है।
राजा-महाराजाओं की परंपरा
प्राचीन काल में राजा-महाराजा जब भी कोई धार्मिक अनुष्ठान करते थे, तो साथ में वस्त्र और अन्न का दान अवश्य करते थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह परंपरा केवल सामाजिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी गहराई रखती है।
भंडारे का उद्देश्य क्या है?
भंडारे का उद्देश्य केवल समाजसेवा या जरूरतमंदों को भोजन कराना भर नहीं है।
शास्त्रों के अनुसार, अन्नदान वह पुण्य है जो सीधे आत्मा की तृप्ति करता है। अन्न केवल शरीर का पोषण नहीं करता, वह आत्मा को भी संतोष देता है। इसीलिए इसे “जीवित अवस्था में किया गया सबसे प्रभावशाली दान” कहा गया है।
शास्त्रों से प्रमाण: पद्मपुराण की कथा
पद्मपुराण में वर्णित एक प्रसंग के अनुसार, विदर्भ के राजा श्वेत ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मलोक प्राप्त किया। लेकिन एक त्रुटि रह गई — उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी अन्न का दान नहीं किया था।
परिणामस्वरूप, ब्रह्मलोक जैसी उच्च अवस्था में पहुंचकर भी उन्हें भोजन नहीं मिला।
ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि जैसा दान मनुष्य पृथ्वी पर करता है, मृत्यु के बाद उसे वही प्राप्त होता है।
एक और शिक्षाप्रद कथा: भगवान शिव और वृद्धा स्त्री
पुराणों में एक अन्य कथा है जहाँ भगवान शिव ब्राह्मण के वेश में पृथ्वी पर विचरण करते हैं।
एक वृद्ध विधवा स्त्री से उन्होंने दान मांगा, पर वह उस समय उपले बना रही थी। उसने कहा कि वह बाद में कुछ देगी। जब ब्राह्मण रूपी शिव ने आग्रह किया, तो उसने क्रोध में आकर गोबर ही दान में दे दिया।
मृत्यु के बाद जब उस स्त्री ने परलोक में भोजन मांगा, तो उसे खाने के लिए गोबर दिया गया।
जब उसने कारण पूछा, तो उत्तर मिला — "जो तुमने दान किया था, वही अब तुम्हें मिल रहा है।"
अन्नदान: केवल धर्म नहीं, जीवन का आधार
इन कथाओं से यह सिद्ध होता है कि अन्नदान मात्र एक कर्मकांड नहीं, बल्कि यह जीवन के हर चरण — जन्म से मृत्यु तक और उससे भी आगे परलोक तक — प्रभाव डालने वाला दान है।
अन्नदान क्यों है सबसे श्रेष्ठ?
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अन्न से शरीर और आत्मा दोनों तृप्त होते हैं
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यह दान सीधा लोक और परलोक दोनों में फल देता है
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यह कर्म सबसे सरल, लेकिन सबसे प्रभावशाली है
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यह दान अहंकार नहीं, करुणा और सेवा का प्रतीक है
निष्कर्ष: भोजन का दान, आत्मा का कल्याण
यदि आप कोई एक पुण्य कार्य करना चाहते हैं, तो अन्नदान से श्रेष्ठ कुछ नहीं।
यह एक ऐसा दान है जो कभी व्यर्थ नहीं जाता। यह न केवल दूसरों की भूख मिटाता है, बल्कि आपके भीतर की मानवता, विनम्रता और ईश्वरीय भावना को भी पोषित करता है।
“अन्नदान ही जीवनदान है।”
आपके द्वारा किसी भूखे को दिया गया एक निवाला भी, आपके भाग्य को बदल सकता है।